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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
8. गीता में फलसहित विविध उपासनाओं का वर्णन
ज्ञातव्य
उत्तर- भूत प्रेतों का बल उन्हीं मनुष्यों पर चलता है, जिनके साथ पूर्वजन्म का कोई लेन-देन का संबंध रहा है अथवा जिनका प्रारब्ध खराब आ गया है अथवा जो भगवान् के (पारमार्थिक) मार्ग में नहीं लगे हैं अथवा जिनका खान-पान अशुद्ध है और जो शौच-स्नान आदि में शुद्ध नहीं रखते अथवा जिनके आचरण खराब हैं। जो भगवान् के परायण हैं, भगवन्नाम का जप-कीर्तन करते हैं, भगवत्कथा सुनते हैं, खान-पान, शौच स्नान आदि में शुद्धि रखते हैं, जिनके आचरण शुद्ध हैं, उनके पास भूत-प्रेत प्रायः नहीं आ सकते। जो नित्यप्रति श्रद्धा से गीता, भागवत, रामायण आदि सद्ग्रंथों का पाठ करते हैं, उनके पास भी भूत-प्रेत नहीं जाते। परंतु कई भूत-प्रेत ऐसे होते हैं, जो स्वयं गीता, रामायण आदि का पाठ करते हैं। ऐसे भूत-प्रेत पाठ करने वालों के पास जा सकते हैं, पर उनको दुख नहीं दे सकते। अगर ऐसे भूत-प्रेत गीता आदि का पाठ करने वालों के पास आ जाएँ तो उनका निरादर नहीं करना चाहिए; क्योंकि निरादर करने से वे चिढ़ जाते हैं। जो रोज गंगाजल का चरणामृत लेता है, उसके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते। हनुमान चालीसा अथवा विष्णुसहस्र नाम का पाठ करने वाले के पास भी भूत प्रेत नहीं आते। एक बार दो सज्जन बैलगाड़ी पर बैठकर दूसरे गाँव जा रहे थे। रास्ते में गाड़ी के पीछे एक पिशाच (प्रेत) लग गया। उसको देखकर वे दोनों सज्जन डर गये। उनमें से एक सज्जन ने विष्णु सहस्रनाम का पाठ शुरू कर दिया। जब तक दूसरे गाँव की सीमा नहीं आयी, तब तक वह पिशाच गाड़ी के पीछे-पीछे ही चलता रहा। सीमा आते ही वह अदृश्य हो गया। इस तरह विष्णु सहस्रनाम के प्रभाव से वह गाड़ी पर आक्रमण नहीं कर सका। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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