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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीतोक्त समग्र ब्रह्म या पुरुषोत्तम
इस संसार में क्षर और अक्षर ये दो प्रकार के पुरुष हैं, जिनमें समस्त अचेतन भूतप्राणियों के शरीर रूप जगत् क्षर और कूटस्थ जीवात्मा अक्षर है। इन दोनों से उत्तम पुरुष तो अविनाशी, परमात्मा, महेश्वर दूसरा ही है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका भरण-पोषण करता है। वह पुरुषोत्तम मैं हूँ, क्योंकि मैं क्षर से तो अतीत हूँ और अक्षर से उत्तम हूँ, इसलिये लोक और वेद मुझको ही ‘पुरुषोत्तम’ कहते हैं [1] ’ सातवें अध्याय में कथित अपरा प्रकृति को ही यहाँ क्षर पुरुष बतलाया गया है और परा प्रकृति जीवात्मा को ही अक्षर पुरुष ‘पुरुषोत्तम’ वही समग्र ब्रह्म है जिसका यह द्विविध प्रकाश है। भगवान् का यह ‘समग्र’ रूप ही गीतोक्त पुरुषोत्तम रूप है। इस ‘पुरुषोत्तम’ स्वरूप का ही मूर्तिमान् नित्य सत्य मायातीत सौन्दर्य माधुर्य समुद्र परम दिव्यातिदिव्य मंगल विग्रह भगवान् श्रीकृष्ण हैं। भगवान् कहते हैं- यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्। ‘अर्जुन! जो पुरुष इस प्रकार तत्वतः मुझे ‘पुरुषोत्तम’ जान लेता है वही असंमूढ है और वही सब कुछ जान गया है। ऐसा ज्ञानी पुरुष सर्वभाव से मुझ (श्रीकृष्ण)- को ही भजता है।’ यही गुह्यतम शास्त्र है, इसको जानकर बुद्धिमान् पुरुष कृतकृत्य हो जाता है। जो भगवान् को इस प्रकार नहीं जानते वही संमूढ हैं। उन्हीं के लिये भगवान् ने कहा है-‘अवजानन्ति मां मूढाः।’ इस विवेचन से हम भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप का किंचित् अनुमान कर सकते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ही सच्चिदानन्द नित्यशुद्धबुद्धमुक्त स्वभाव विज्ञानानन्दघन ब्रह्म हैं, भगवान् ही अक्षर, अविनाशी आत्मा हैं, भगवान् ही हिरण्यगर्भ हैं, भगवान् ही सर्वदेवता हैं, भगवान् ही जीवात्मा हैं, भगवान् ही प्रकृति हैं, भगवान् ही जगत् हैं, भगवान् ही जगद्व्यापी विभु अक्षर अव्यक्त सगुण निराकार ब्रह्म हैं, भगवान् ही यज्ञ हैं, भगवान् ही कर्म हैं, भगवान् ही जगत् के कर्ता, भर्ता, संहर्ता हैं, भगवान् ही साक्षी और भगवान् ही भोक्ता हैं, भगवान् ही शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति, सूर्य आदि के अंशी हैं, भगवान् ही शिव, विष्णु, ब्रह्मा, शक्ति, सूर्य आदि हैं भगवान् ही श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीनृसिंह आदि अवतार हैं, भगवान् ही समस्त सृष्टि के द्वारा विभिन्न रूपों में पूजित विभिन्न नामरूपधारी ईश्वरीय नियमविशेष हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (गीता 15/12-18)।
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