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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
ज्ञान और भक्ति
प्रश्न है-‘ज्ञान से भक्ति बढ़ती है या भक्ति से ज्ञान? उनमें से किसका स्थान ऊँचा है? इसके उत्तर में निवेदन है कि ज्ञान से भक्ति बढ़ती है और भक्ति से ज्ञान। दोनों का ही स्थान ऊँचा है। कोई किसी से छोटा या बड़ा, ऊँचा या नीचा नहीं है। वास्तव में भक्ति या ज्ञान के स्वरूप को ठीक-ठीक न जानने के कारण ही ऐसे प्रश्न होते हैं। ज्ञान क्या है? भगवान् के तत्व का यथार्थ बोध होना। और भक्ति क्या है? भगवान् के स्वरूप में प्रगाढ़ प्रेम होना। जिसे भगवान् के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होगा, वह इतर वस्तुओं से हटकर भगवान् की ओर ही आकृष्ट होगा। जितना ही उनके तत्व का ज्ञान होगा उतना ही उनके प्रति प्रेम बढ़ता जायगा और उसके परिणाम कें संसार से वैराग्य भी होता जायगा। श्रीमद्भागवत में कहा है- जो भगवान् की शरण में जाता है, उसमें तीन बातें साथ-ही-साथ प्रकट होने और बढ़ने लगती हैं-भगवान् के प्रति प्रेम, भगवत्तत्व का ज्ञान तथा अन्य वस्तुओं से वैराग्य, जैसे भोजन करने वाले मनुष्य को प्रत्येक ग्रास के साथ ये तीन बातें प्राप्त होती हैं-तृप्ति, पुष्टि और भूख की निवृत्ति। यथा- भक्तिः परेशानुभवो विरक्ति- यह ज्ञान से भक्ति का बढ़ना हुआ। गीता में भी भगवान् ने ज्ञान से भक्ति और भक्ति से ज्ञान की प्राप्ति बतायी है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (11/2/42)
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