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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीता के अनुसार भगवद्भजन
आपके दिनभर काम में लगे रहना पड़ता है, अवकाश बहुत कम मिलता है, इसलिये तीव्र इच्छा होने पर भी आप अलग बैठकर भजन-ध्यान के लिये समय नहीं निकाल सकते। काम करते हुए ही भजन का कोई तरीका जानना चाहते हैं-सो बहुत अच्छी बात है। मेरी समझ से ऐसी बात तो नहीं होनी चाहिये कि आपको समय मिलता ही न हो। शौच, स्नान, भोजन, शयन आदि के लिये समय किसी तरह आप निकालते ही होंगे। वैसे ही आप चाहें तो भजन के लिये भी कुछ समय निकाल सकते हैं। जो कार्य अत्यन्त आवश्यक होता है, जिस कार्य के प्रति मन में आकर्षण होता है तथा जिसके लिये तीव्र इच्छा होती है, उसके लिये समय मिल ही जाता है। आप प्रयत्न करके देखें। आपकी लगन, रुचि तथा मन में आवश्यकता की भावना होगी तो आसानी से समय मिल जायगा। फिर श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीभगवान् ने एक ऐसा तरीका बतलाया है कि जिससे यदि मनुष्य चाहे तो प्रतिक्षण भगवान् का भजन-पूजन बड़ी सुगमता के साथ कर सकता है। भगवान् कहते हैं- यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्। ‘जिन परमात्मा से समस्त भूतों की उत्पत्ति हुई है और जिनके द्वारा यह सर्व जगत् व्याप्त है, उन परमात्मा को अपने सहज कर्मों के द्वारा पूजकर मनुष्य सिद्धि को (मानव-जीवन की परम और चरम सफलता को) प्राप्त हो जाता है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (गीता 18/46)
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