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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
कर्म फल का भोग
‘उनको अनियत काल तक नरक में निवास करना पड़ता है, यह हमने सुना है।’ [2] ‘वे विषय भोगों में अत्यन्त आसक्त लोग अपवित्र नरकों में गिरते हैं।’ पुराणों में नरकों के वर्णन तथा नरक-यन्त्रणा भोगने वाले प्राणियों के बहुत प्रसंग आये हैं, जो सत्य हैं। इसी प्रकार अच्छी-बुरी योनियों में भी कर्मफल-भोग होता है। पुण्यकर्म करने वालों को अच्छी योनि मिलती है, पापकर्म करने वालों को बुरी योनि। इसका वर्णन स्पष्ट रूप से छान्दोग्योपनिषद् में यों आया है- ‘तद्य इस रमणीयचरणा अभ्याशो ह यत्ते रमणीयां योनि-मापद्येरन् ब्राह्मणयोनिं वा क्षत्रिययोनिं वा वैश्ययोनिं वाथ य इह कपूयचरणा अभ्याशो ह यत्ते कपूयां योनिमापद्येरज्श्वयोनिं वा शूकरयोनिं वा चण्डालयोनिं वां।’[3] ‘उन जीवों में जो अच्छे आचरण वाले होते हैं, वे शीघ्र ही श्रेष्ठ योनि को प्राप्त होते हैं और जो बुरे आचरण वाले होते हैं, वे तत्काल अशुभ योनि को प्राप्त होते हैं। वे कुत्ते की योनि, शूकरयोनि या चण्डाल योनि को प्राप्त करते हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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