विषय सूची
गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
कल्याण और गीता
आप ‘कल्याण’ को बराबर पढ़ते आ रहे हैं-यह बड़ी प्रसन्नता की बात है। ‘कल्याण’ एक धार्मिक पत्र है। सनातन धर्म से सम्बन्ध रखने वाली प्रत्येक बात को प्रचार ‘कल्याण’ द्वारा होता है। इसका प्रधान विषय अध्यात्म ही है। भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, निष्काम कर्मयोग, वर्णधर्म, आश्रम धर्म, सदाचार, सतीधर्म, नारीधर्म, आदि सभी विषयों पर ‘कल्याण’ द्वारा प्रकाश डाला जाता है। हिंदूशास्त्र में वेद, उपनिषद्, पुराण, महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों का बहुत उच्च स्थान है; इन्हीं ग्रन्थों में हमारी संस्कृति का परम दिव्य उज्वल स्वरूप चित्रित है। अतः इन्हीं के आधार पर ‘कल्याण’ में अधिकांश विचार प्रकट किये जाते हैं। इन सबमें भी गीता का स्थान महान् है। गीता के अनुसार जीवन बनाने के से मनुष्य का प्रत्येक व्यवहार आध्यात्मिक उन्नति का-भगवत्पूजन का साधन बन जाता है। गीता ने मुख्यतः दो निष्ठाओं का वर्णन करके उन्हें भक्ति के साथ संयुक्त कर ‘मणि-कांचन योग’ उपस्थित किया है। ‘कल्याण’ किसी व्यक्ति के मत की ओर आकृष्ट न होकर, अपनी समझ के अनुसार भगवान् के मत का प्रकाश करता है। ‘कल्याण’ गीता को कर्मयोग और ज्ञान योग-दोनों निष्ठाओं का प्रतिपादक मानता है, ‘कल्याण’ ने अब तक इसी नीति से गीता को देखने और समझने का प्रयास किया है। ‘कल्याण’ किसी व्यक्ति या व्यक्तिगत सिद्धान्त का प्रचारक न होकर निष्पक्ष शास्त्रीय सिद्धान्त का ही प्रचार करना अपना ध्येय मानता है। पर ‘कल्याण’ किसी पर किसी सिद्धान्त को लादना भी नहीं चाहता। जो अपने शुद्ध दृष्टिकोण से गीता में केवल ‘संन्यास’-का प्रतिपादन मातने हैं, वे वैसी बात मान सकते हैं और जो केवल ‘निष्काम कर्मयोग’ को ही गीता का मुख्य सिद्धान्त मानते हैं, वे भी अपने मत के लिये स्वतन्त्र हैं। ‘कल्याण’ अपनी बात कहता है, किसी का खण्डन नहीं करता। ‘कल्याण’ यह दावा भी नहीं करता कि गीता के सम्बन्ध में वह जो मानता है, वही ठीक है। गीता श्रीभगवान् की वाणी है, इसलिये वह सभी के लिये उपयोगी है। जो जैसा अधिकारी है, गीता का उसके लिये वैसा ही उपदेश है। रत्नों का समुद्र है गीता-जिसकी जैसी डुबकी, उसको वैसा ही फल। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रकरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज