गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
क्रमांक प्रकरण पृष्ठ संख्या
1. मातर्गीते 1
2. श्रीमद् भगवद्गीता-मूल एवं संक्षिप्त हिन्दी-टीका 4
3. श्रीमद् भगवद्गीता की आरती 228
भक्तियोग
4. गीता में भक्ति योग 229
5. पुरुषोत्तम-तत्व 243
6. गीता का पर्यवसान साकार ईश्वर की शरणागति में है 252
7. सर्वधर्मान् परित्यज्य 258
8. गीतोक्त समग्र ब्रह्म या पुरुषोत्तम 267
9. गीता में विश्व रूप-दर्शन 282
10. गीता और साधना 293
11. सकाम भक्तों और योगक्षेम की व्यवस्था 323
12. श्रीमद्भगवद्गीतानुसारभगवत्प्राप्ति के उपाय 331
13. विषय-चिन्तन ही पतन का कारण है 334
14. ब्रह्मज्ञान, पराभक्ति, भगवान् की लीला 335
15. शरणागति का स्वरूप और शाश्वती शान्ति 337
16. ज्ञान और भक्ति 341
17. अहंकार ही दुःख कारण है 344
18. भगवद्भक्ति और दैवी सम्पत्ति 345
19. त्याग से शान्ति मिलती ही है 346
20. भगवच्चिन्तन में ही सुख है 348
21. गीता में भगवत्स्मरण 351
22. अपि चेत्सुदुराचारो 353
23. गीता के अनुसार भगवद्भजन 355
24. श्रीकृष्ण ही पुरुषोत्तम-तत्व हैं 358
25. मृत्युः सर्वहरश्चाहम् 359
26. भगवान् परम सुहृद् 360
27. श्रीमद्भागवद्गीता के अनुसार भक्त कौन है 362
कर्मयोग
28. गीतोक्त कर्मयोग और आधुनिक कर्मवाद 365
29. धर्मयुद्ध-भगवत्प्राप्ति का साधन 380
30. निष्काम कर्म 394
31. निष्काम भाव क्यों नहीं होता? 398
32. निष्कामता का स्वरूप 400
33. निष्काम कर्म का स्वरूप 401
34. आसक्ति और कामना ही बन्धन 403
35. प्रसन्नता-प्राप्ति का उपाय 405
ज्ञानयोग
36. पाँच प्रश्न 406
37. प्रकृति की लीला के द्रष्टा बनिये 415
38. जगत् का स्वरूप और ब्रह्मज्ञानी के व्यवहार 416
39. जीवन्मुक्त के द्वारा वस्तुतः कर्म नहीं होते 418
40. काम-क्रोधादि स्वभाव नहीं, विकार हैं 420
41. मन, बुद्धि आदि के स्वरूप 422
42. आत्मा नहीं मरता, जीव ही जन्मता-मरता दीखता है 424
43. श्रीमद् भगवद्गीता में ज्ञान के बीस साधन 426
44. भगवद्गीता के अनुसार गुणातीत या ज्ञानी के चैदह लक्षण 427
विविध
45. गीता के अर्थ के लिये आग्रह मत करो 428
46. गीता के विभिन्न अर्थों की सार्थकता 431
47. गीता और श्रीभगवन्नाम 440
48. गीता और वैराग्य 443
49. वैराग्य और अभ्यास 446
50. श्रीमद्भगवद्गीता में मानव का त्रिविध स्वरूप और साधन 448
51. गीता में भगवान् के स्वरूप, परलोक-पुनर्जन्म तथा भगवत्प्राप्ति का वर्णन 541
52. भोगवाद और आत्मवाद 481
53. गीतोक्त सांख्य योग एवं कर्मयोग 491
54. या निशा सर्वभूतानाम् 496
55. योग का अर्थ 500
56. मनुष्य के दो बड़े शत्रु-राग और द्वेष 504
57. शान्ति-सुख की प्राप्ति के साधन 506
58. विषय चिन्तन से सर्वनाश और भगवच्चिन्तन से परम शान्ति 508
59. त्याग से शान्ति- 511
60. अध्यात्मविद्या 513
61. ज्ञान और प्रेम 515
62. पापों के नाश का उपाय 519
63. कर्म फल का भोग 522
64. पाप कामना से होते हैं- प्रकृति से नहीं 523
65. भोग-वैराग्य और बुद्धियोग-बुद्धिवाद 528
66. आध्यात्मिक शक्ति ही जगत् को विनाश से बचा सकती है 530
67. असुर-मानव 533
68. गीता सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 535
69. जाति में जन्म की प्रधानता है 540
70. कल्याण और गीता 545
71. दैवी सम्पत्ति के गुण 546
72. स्थित प्रज्ञ या जीवन्मुक्त पुरुष के लक्षण 548
73. आसुरी सम्पत्ति के लक्षण 549
74. गीतोक्त चौदह यज्ञ 552
75. गुणों का स्वरूप और उनका फल आदि 553
76. गुणों के अनुसार आहार-यज्ञादि के लक्षण 554
77. अध्यायानुक्रम से गीतान्तर्गत व्यक्तियों द्वारा कथित श्लोक-संख्या 555
78. गीता के श्लोकों का छनद-विवरण 556
79. ज्ञान-वैराग्य-भक्तिगीता के दो प्रधान पात्र 557
80. श्रीमद्भगवद् गीता के विविध प्रसंग 575
अंतिम पृष्ठ 601

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