विषय |
सतोगुण |
रजोगुण |
तमोगुण
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गुणों का स्वरूप |
अन्तःकरण और इन्द्रियों में चेतनता, बोधशक्ति का उत्पन्न होना। (14/11) |
लोभ, सांसारिक कर्मों में प्रवृत्ति, कर्मों का स्वार्थ बुद्धि से आरम्भ, मन की चंचलता और भोगों की लालसा।(14/12) |
अन्तःकरण और इन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य कर्म में प्रवृत्त न होना, प्रमाद (न करने योग्य कार्य प्रवृत्ति), मोह। (14/13)
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गुणों के द्वारा लगाया जाना। |
सुख में लगाता है’’’’(14/9) |
कर्म में लगाता है।’’’ |
ज्ञान को ढककर प्रमाद में लगाता है।(14/9)
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गुणों के द्वारा जीवन बन्धन। |
प्रकाशमय निर्विकार सतोगुण निर्मल होने के कारण सुख की आसक्ति से और ज्ञान के अभिमान से बाँधना है।(14/6) |
कामना और आसक्ति से उत्पन्न होने वाला रागरूप रजोगुण कर्म और उनके फल की आसक्ति से बाँधता है। (14/7) |
सब देहाभिमानियों को मोहने वाला अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण प्रमाद, आलस्य और नींद से बाँधता है। (14/8)
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गुणों से उत्पन्न भाव। |
ज्ञान। (14/17) |
लोभ। (14/17) |
प्रमाद और मोह। (14/17)
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गुणों के फल’’’’’ |
निर्मल सुख-ज्ञान-वैराग्यादि (14/16) |
दुःख। (14/16) |
अज्ञान। (14/16)
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किस गुण की वृद्धि में मरने वाला किस लोक या योनि में जाता है। |
उत्तम कर्म करने वालों के मल-रहित दिव्य देवलोक में देव-योनि को प्राप्त होता है।(14/14) |
कर्मो की आस्क्ति वाले मनुष्य लोक में मनुष्य योनिको प्राप्त होता है। |
ऊँट, भैसा, सूअर, आदि मूढ़ योनियों में जन्म होता है।
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किस गुण में स्थित पुरूष किस लोक या योनि में जाते हैं। |
उच्च गति को प्राप्त होते है, सिद्ध या साधकों के भगवदामुखी ध्रेष्ठ कुल में जन्म लेते है अथवा देवता बनते हैं।(14/18) |
बीच की गति को प्राप्त होते हैं कर्मासक्त मनुष्य बनाते हैं। (14/18) |
नीचे की पशु आदि योनियों में, नार की योनि में या भूत-प्रेतादि पापयोनियों में जाते हैं।(14/18)
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