गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
असुर-मानव
संसार की वर्तमान दुर्दशा पर मैं क्या लिखूँ। यों तो सब भगवान् का ही विधान है; परंतु लौकिक दृष्टि से तो आज सारा संसार एक-दूसरे के विनाश में लगा है। जल, थल और आकाश-आज सभी विषाग्नि की वर्षा से संत्रस्त हैं। सारा भूमण्डल सर्वविनाशी बमों की गड़गड़ाहट से काँप रहा है। अग्नि देवता की ज्वालामयी लपटों से सभी जले-भुने जा रहे हैं! मनुष्य आज अपनी मानवता को मारकर असुर-पिशाच बन गया है। लाखों-करोड़ों निरीह नर-नारी मृत्यु के मुख में जा रहे हैं, कोई गोलों की मार से तो कोई पेट की ज्वाला से! उधर लड़ाकू लोग अपनी रक्त-पिपासा का अकाण्ड ताण्डव कर रहे हैं, तो इधर अर्थगृध्र सुसभ्य मानव प्राणी सभ्यताभरी डकैती करके अपनी रुधिर प्रदिग्ध भोग-लालसा को बढ़ा रहे हैं! अपने-ही जैसे नर-नारी अभाव की आग में जलते रहें, सब भयानक शस्त्रों के शिकार हो जायँ, सबके घर-द्वार राख के ढेर बन जायँ एवं मृत्यु की रक्तजिह्न पतियों, पुत्रों, पिताओं का रक्त पानकर नारी-जगत् को नरक-यन्त्रणा भोगने के लिये बाध्य कर दे; पर हम सुरक्षित रहें और इन मरने वालों की मृत्यु-समाधि पर-श्मशान की विस्तृत भस्मराशि पर हमारे स्वर्ण-प्रासाद निर्मित हों तथा हम धन-सम्मान से सुसज्जित होकर उनमें थिरक-थिरक कर नाचें। यह मानव की पैशाचिकता- उसकी राक्षसी वृत्ति नहीं तो और क्या है? विज्ञान के महारथी भी आज अपनी सारी सृजनशक्ति को महानाश के प्रयास में लगा रहे हैं। किस साधन से कम-से-कम समय में अल्पायास से ही अधिक-से-अधिक जनपदों का-नगरों का ध्वंस साधन हो और निरीह नर-नारी काल के कराल गाल में जायँ-इन महारथियों के महान् मस्तिष्क आज उसी की खोज में लगे हैं, मानो महारुद्र की रौद्र इच्छा की पूर्ति का इन्होंने ठेका ही ले लिया है। इच्छा की पूर्ति का इन्होंने ठेका ही ले लिया है। देश-के-देश उजाड़कर उनके खँडहरों में ये अपने विज्ञान की कीर्ति-पता का फहराना चाहते हैं। यह विज्ञान-जगत् का राक्षसीपन नहीं तो और क्या है? विद्वानों की विद्वता, नीतिज्ञों की नीति और विभिन्न मतवादियों की गवेषणापूर्ण प्रवृत्ति-सभी मानवता की हत्या का अभूतपूर्व प्रयास कर रहे हैं। ईश्वर और धर्म की दुहाई देने वाले भी आज अपने ईश्वर से पर-पक्ष का संहार और अपना विस्तार चाहते हैं, मानो भिन्न-भिन्न कई परमेश्वर एक-दूसरे का पक्ष समर्थन करते हैं! सभी आसुरी सम्पत्ति को पाकर उन्मत्त हो रहे हैं। इसका परिणाम बड़ा ही भयानक होगा। किसी की हार होगी और किसी की जीत इसका पता तो सर्वज्ञ परमेश्वर को है; परंतु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि मानवता का संहार होने पर दुःख की ऐसी ज्वाला भड़केगी, जो सबकी सारी उछल-कूद मिटाकर उन्हें भस्म कर देगी। इसी के साथ असुर-मानव का विनाश होगा तभी जगत् में फिर सुख-शान्ति के दर्शन हो सकेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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