विषय सूची
गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गीतोक्त समग्र ब्रह्म या पुरुषोत्तम
गीता का ‘समग्र ब्रह्म’ या ‘पुरुषोत्तम’ कौन है, इसका यथार्थ तत्व तो गीतावक्ता भगवान् श्रीकृष्ण ही जानते हैं तथापि हमारी दृष्टि में इसका सीधा-सा उत्तर यह है कि श्रीकृष्ण ही वह ‘समग्र ब्रह्म’ या ‘पुरुषोत्तम’ हैं; क्योंकि भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से ही अपने को ‘समग्र’[1]1 और ‘पुरुषोत्तम’ [2]2 घोषित किया है। परंतु अब प्रश्न यह रह जाता है, उन श्रीकृष्ण का स्वरूप क्या है? ब्रह्मवादी महात्मा कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने ब्रह्म को लक्ष्य करके ही अपने को पुरुषोत्तम बतलाया है। पर द्वैतवादी महापुरुष कहते हैं कि अर्जुन के सामने रथ पर विराजित साकार विग्रह भगवान् श्रीकृष्ण केवल अपने लिये ही ऐसा कहते हैं। अब गीता के द्वारा ही हमें यह देखना है कि भगवान् श्रीकृष्ण का स्वरूप गीता में क्या है। श्रीकृष्ण के स्वरूप का विचार ही ‘समग्र ब्रह्म और पुरुषोत्तम’ का विचार है और श्रीकृष्ण के स्वरूप की उपलब्धि ही समग्र ब्रह्म और पुरुषोत्तम की प्राप्ति है। इसमें कोई संदेह नहीं कि गीता में भगवान् ने ‘अहम्, मम, माम, मे, मयि’ आदि में पदों से |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (गीता 7/1)मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युज्जन् मदाश्रयः। असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु।। श्री भगवान् बोले-पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझ में आसक्त चित्त तथा अनन्यभाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त, सब के आत्मरूप मुझ को संशय रहित जानेगा, उसको सुन।
- ↑ (गीता 15/18) यस्मात्क्षरमीतोअहमक्षरादपि चैत्तमः। अतोअस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।। क्यों कि मैं नाशवान् जडवर्ग-क्षेत्र से तो सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी जीवात्मा से भी उत्तम हूँ, इसलिये लोक में और वेद में भी ‘पुरुषोत्तम’ नाम से प्रसिद्ध हूँ।
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रकरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज