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गीता चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
योग का अर्थ
योग का यथार्थ अर्थ समझो। वह अर्थ है-‘श्रीभगवान् के साथ युक्त हो जाना, ‘ ’भगवान् को यथार्थ में पा लेना’ या ‘भगवत्प्रेम रूप अथवा भगवदू्रप हो जाना।’ यही जीवन का परम ध्येय है। जब तक जीव इस स्थिति में नहीं पहुँच जायगा। तब तक न उसको तृप्ति होगी, न शान्ति मिलेगी, न भटकना बंद होगा और न किसी पूर्ण नित्य सनातन, आनन्दरूप तत्व के संयोग की अतृप्ति और प्रच्छन्न आकांक्षा की ही पूर्ति होगी। इस पूर्ण के संयोग का नाम ही योग है। अथवा इसको पाने के लिये जो जीव का विविध रूप साधन प्रयत्न है उसका नाम भी योग है। यह पूर्ण की प्राप्ति का प्रयत्न जिस क्रिया साथ जुड़ता है, वही योग बन जाता है। कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग, सांख्ययोग, राजयोग, मन्त्रयोग, लययोग, हठयोग, आदि इसी के नाम हैं, परन्तु यह याद रखो कि जो कर्म, ज्ञान, भक्ति, ध्यान, सांख्य, मन्त्र, लय या हठ की क्रिया भगवन्मुखी नहीं है, वह योग नहीं है, कुयोग है और उससे प्रायः पतन ही होता है। अतएव इन सब योगों में से, जिसमें तुम्हारी रुचि हो, उसी को भगवत्प्राप्ति का मार्ग मानकर सादर ग्रहण करो। ये सब योग भिन्न-भिन्न भी हैं और इनका परस्पर मेल भी है। यों तो किसी भी योग में ऐसी बात नहीं है कि वह दूसरे की बिलकुल अपेक्षा न रखता हो, परन्तु प्रधानता-गौणता का अन्तर तो है ही। कुछ योगों का सुन्दर समन्वय भी है। गीता में ऐसा ही समन्वय प्राप्त होता है। केवल शरीर, केवल वाणी, केवल मन, केवल बुद्धि आदि से जैसे कोई काम ठीक नहीं होता, इसी प्रकार योगों के विषय में भी समझो। हाँ, इतना जरूर ध्यान रहे कि जिन योगों में मन का संयोग होने पर भी (जैसे नेति, धौति आदि षट्कर्म; बन्ध, मुद्रा, प्राणायाम कुण्डलिनी-जागरण आदि) शारीरिक क्रियाओं की प्रधानता है अथवा मन्त्र-तन्त्रादि से सम्बन्धित देवविशेष की पूजा -पद्धति मुख्य है, उनमें अज्ञान, अविधि, अव्यवस्था, अनियमितता होने से लाभ तो होता ही नहीं, उलटी हानि होती है। भाँति-भाँति के कष्ट साध्य या असाध्य शारीरिक और मानसिक रोग हो जाते हैं। अतएव ऐसे योगों की अपेक्षा भक्तियोग, निष्काम कर्मयोग, ज्ञानयोग आदि उत्तम हैं, ये अपेक्षाकृत बहुत ही निरापद हैं। इनमें भी अनुभव शून्य लोगों की देखा देखी अविधि करने से हानि हो सकती है; अतएव शान्त, शीलवान्, शास्त्रज्ञ एवं अनुभवी गुरु की- पथ प्रदर्शक की सभी योगों में अत्यन्त आवश्यकता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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