महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
53.नहुष
ब्रह्महत्या के दोष से पीड़ित होकर पदच्युत होने के बाद इन्द्र कहीं जाकर छिपे रहे और देवराज के पद पर महाराज नहुष सुशोभित हुए। शुरू-शुरू में देवताओं में नहुष का बड़ा मान था। मर्त्यलोक में राजा रहते समय उन्होंने जो यश और पुण्य कमाया था उससे उनकी बुद्धि स्थिर रहा करती थी और वह पाप-कर्मों से बचे रहे। उसके बाद उनके बुरे दिन प्रारंभ हो गये। उनकी नम्रता और सच्चरित्रता जाती रही। इन्द्र के पद को प्राप्त करने से वह मदांध हो गये। स्वर्गलोक में सुख भोग ही प्रधान होता है। अत: देवेन्द्र नहुष भोग-विलास में लगे रहे। उनके मन में काम-वासना का निवास हो गया। बुद्धि ठिकाने न रही। एक दिन दुष्ट-बुद्धि नहुष ने सभासदों को आज्ञा देकर कहा- "क्या कारण है कि देवराज की रानी शची मेरे पास अभी तक नहीं आई? जब इन्द्र मैं हूँ तो शची को मेरे भवन में आना चाहिए?" इन्द्र-पत्नी ने जब यह बात सुनी तो उन्हें असीम दु:ख और क्रोध हुआ। तत्काल ही वह देवगुरु बृहस्पति के पास गईं और विलाप करने लगीं- "आचार्य देव, इस पापी से मेरी रक्षा करें।" गुरु बृहस्पति ने इन्द्राणी को अभय देकर कहा- "पुत्री भय न करो। शीघ्र ही इन्द्र वापस आयेंगे। उन्हें तुम फिर से प्राप्त करोगी। चिंता न करो।" नहुष को जब यह बात मालूम हुई कि इन्द्राणी मेरी इच्छा पूरी करने को राजी नहीं है बल्कि जाकर उसने देवगुरु की शरण ली है, तो नहुष के क्रोध का ठिकाना न रहा। नहुष को क्रोध के मारे आपे से बाहर होते देख देवता बहुत डरे। वे बोले- "देवराज,आप क्रोध न करें। आप नाराज हो जायेंगे तो सारे विश्व को पीड़ा पहुँचेगी। आखिर शचीदेवी पराई स्त्री हैं। उन्हें पाने की आप अभिलाषा न करें। आप धर्म की रक्षा करें।" पर कामांध नहुष ने देवों की बात पर ध्यान नहीं दिया। देवता बोल ही रहे थे कि नहुष बात काटकर बोला- "अच्छा! आपको अब धर्म की बातें सूझने लगी हैं। उन दिनों जब इन्द्र ने गौतम-पत्नी अहिल्या का सतीत्व नष्ट किया था तब आपका धर्म कहाँ गया था? उस समय आपने इन्द्र को कुमार्ग से क्यों नहीं रोका? तपस्या करते समय आचार्य विश्वरूप की जब इन्द्र ने हत्या की थी तब आप लोग क्या करते थे? वृत्र को जब इन्द्र ने धोखे से मारा था, तब आप लोगों ने उसे क्यों क्षमा कर दिया? मैं कहता हूँ कि शचीदेवी के लिये यही श्रेयस्कर होगा कि अब वह मेरे पास आ जाये। और आप लोगों की भी भलाई इसी में है कि उसको किसी प्रकार समझाकर मेरे हवाले करें।" नहुष के क्रोध से देवता डर गये। उन्हें भय हुआ कि वह कहीं कोई अनर्थ न कर बैठे। उन्होंने आपस में सलाह करके तय किया कि इन्द्रपत्नी को समझा-बुझाकर किसी तरह नहुष की इच्छानुकूल करने को कहें। यह विचारकर सभी देवता इकट्ठे होकर इन्द्राणी के पास पहुँचे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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