श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी128. जननी के दर्शन
जननी जन्मभूमिश्च जाह्नवी च जनार्दन:। नीलाचल से प्रस्थान करते समय प्रभु ने सार्वभौम आदि भक्तों से कहा था- 'गौड़-देश होकर वृन्दावन जाने से मेरे एक पन्थ दो काज हो जायँगे। प्रेममयी माता के दर्शन हो जायंगे। भागीरथी-स्नान और भक्तों से भेंट करता हुआ मैं रास्ते में जन्मभूमि के भी दर्शन करता जाऊँगा।' महाप्रभु जनार्दन के हो जाने पर भी जननी, जन्मभूमि और जाह्नवी के प्रेम को नहीं भुला सके थे। उनके विशाल हृदय में इन तीनों ही के लिये विशेष स्थान था। इन तीनोंके दर्शनोंके लिये वे व्यग्र हो रहे थे। उड़ीसा-प्रान्त की अन्तिम सीमा पर पहुँचते ही त्रिताप-हारिणी भगवती भागीरथी के मनको परम प्रसन्नता प्रदान करने वाले शुभ दर्शन हुए। आज चिरकाल के अनन्तर जगद्वन्द्य सुरसरि भगवती जाह्नवीके दर्शनमात्र से ही प्रभु मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और-'गंगे-गंगे' कहकर जोरों से रुदन करने लगे। वे गद्गद कण्ठ से गंगा जी की स्तुति कर रहे थे। कुछ देर के अनन्तर प्रभु उठे और भक्तों के सहित उन्होंने गंगा जी के निर्मल शीतल जल में स्नान तथा आचमन किया। उड़ीसा-सीमा-प्रान्त के अधिकारी ने प्रभु के स्वागत-सत्कार का पहले से ही विशेष प्रबन्ध कर रखा था, प्रभु के दर्शन से अधिकारी तथा सभी राज-कर्मचारियोंको परम प्रसन्नता हुई। वे प्रभु के पैरों में पड़कर रुदन करने लगे। प्रभु ने उन्हें छाती से चिपटाकर कृपा प्रदर्शित करते हुए उनके शरीरों पर अपना कोमल हाथ फेरा। प्रभु का स्पर्श पाते ही वे प्रेम में उन्मत्त होकर 'हरि बोल, हरि बोल' कहकर नृत्य करने लगे। प्रभु के आगमन का समाचार सुनकर आस-पास के सभी ग्रामों के स्त्री-पुरुष तथा बालक-बच्चे प्रभु के दर्शनों की लालसा से घाट पर आ-आकर एकत्रित हो गये। वे सभी ऊपर को हाथ उठा-उठाकर नृत्य करने लगे और आकाश को हिला देने वाली हरि-ध्वनि से दिशा-विदिशाओं को गुंजाने लगे। उस पार गौड़-देश की सीमा थी, गौड़-देश के सीमाधिकारी यवन ने इस भारी कोलाहल को सुना। इसलिये उसने इसका असली कारण जानने के लिये एक गुप्तचर को भेजा। उन दिनों दोनों राज्यों में घोर तनातनी हो रही थी। यहाँ से गौड़ जाने के तीन रास्ते थे, तीनों ही युद्ध के कारण बन्द थे। आपस में एक-दूसरे को सदा भय ही बना रहता। वह गुप्तचर हिन्दू का वेष धारण करके प्रभु के समीप आया। प्रभु के दर्शन पाते ही वह समीप पहुँचा। प्रान्ताधिप ने उससे उसकी प्रसन्नता का कारण पूछा। उसने गद्गद कण्ठ से ठहर-ठहरकर कहा- 'सरकार! क्या बताऊं, जिन्हें मैं अभी देखकर आया हूँ, वे तो मानो सौन्दर्य के अवतार ही हैं। उनकी सूरत देखते ही मैं शरीर की सुधि भूल गया। उनकी चितवन में जादू है, मुस्कान में मादकता है और वाणीमें उन्मादकारी रस है। आप उन्हें एक बार देखभर लें, सब बातें भूल जायँगे और उनके बेदामों के गुलाम बनकर कदमोंमें लोटपोट होने लगेंगे।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जननी, जन्मभूमि, जाह्नवी (गंगा जी), जनार्दन और जनक (पिता)- ये पाँच जकार संसार में दुर्लभ हैं अर्थात भाग्यशाली को ही इनके दर्शन होते हैं। सु. र. भां. 163।170