श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी72. क़ाज़ी की शरणागति
बिना मुकुट के राजा भी होते हैं और बिना शस्त्र के सेना भी लड़ सकती है। जो मुकुटधारी राजा अथवा महाराजा होते हैं, उनके तो प्राय: जनता के ऊपर भय से आधिपत्य होता है, वे भीतर से उससे द्वेष भी रख सकते हैं और जनता कभी-कभी उनके विरुद्ध बलवा भी कर सकती है, किंतु जो बिना मुकुट के राजा होते हैं उनका तो जनता के हृदयों पर आधिपत्य होता है। वे तो प्रेम से ही सभी लोगों को अपने वश में कर सकते हैं। चाहे मुकुटधारी राजा की सेना रणक्षेत्र से भय के कारण भाग आवे, चाहे उसकी पराजय ही हो जाय, किंतु जिनका जनता के हृदयों के ऊपर आधिपत्य है, जनता के अन्त:करण पर जिनके शासन की प्रेम-मुहर लगी हुई है, उनके सैनिक चाहे शस्त्रधारी हों अथवा बिना शस्त्र के, बिना जय प्राप्त किये मैदान से भागते ही नहीं। क्योंकि वे अपने प्राणों की कुछ भी परवा नहीं करते। जिसे अपने प्राणों की कुछ भी परवा नहीं, जो मृत्यु का नाम सुनकर तनिक भी विचलित न होकर उसका सर्वदा स्वागत करने के लिये प्रस्तुत रहता है, उसके लिये संसार में कोई काम दुरूह नहीं। उसे इन बाह्यशस्त्रों की उतनी अधिक अपेक्षा नहीं, उसका तो साहस ही शस्त्र है। वह निर्भिक होकर अपने साहसरूपी शस्त्र के सहारे अन्याय के पक्ष लेने वाले का पराभव कर सकता है। फिर भी वह अपने विरोधी के प्रति किसी प्रकार के बुरे विचार नहीं रखता। वह सदा उसके हित की ही बात सोचता रहता है, अन्त में उसका भी कल्याण हो जाता है। प्रेम में यही तो विशेषता है। प्रेममार्ग में कोई शत्रु ही नहीं। घृणा, द्वेष, कपट, हिंसा अथवा अकारण कष्ट पहुँचाने के विचार तक उस मार्ग में नहीं उठते, वहाँ तो ये ही भाव रहते हैं- इसी का नाम ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’, ‘सविनय अवज्ञा’ अथवा ‘सत्याग्रह’ है। महाप्रभु गौरांगदेव ने संकीर्तन रोकने के विरोध में इसी मार्ग का अनुसरण करना चाहा। क़ाज़ी की नीच प्रवृत्तियों के दमन करने के निमित्त उन्होंने इसी उपाय का अवलम्बन किया। सब लोगों से उन्होंने कह दिया- ‘आप लोग घबड़ायँ नहीं, मैं स्वयं क़ाज़ी के सामने संकीर्तन करता हुआ निकलूंगा, देखें, वह मुझे संकीर्तन से किस प्रकार रोकता है?’ प्रभु के ऐसे आश्वासन से सभी को परम प्रसन्नता हुई और सभी अपने-अपने घरों को चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिनकी अनुकम्पा ये यवन भी सच्चरित्र होकर श्रीकृष्ण के सुमधुर नामों का जप करने वाले बन जाते हैं, उन स्वच्छन्द अद्भुत चेष्टाएं करने वाले श्रीमहाप्रभु चैतन्य देव के चरणकमलों में हम प्रणाम करते हैं। चै. चा आ. 17/1
- ↑ सभी सुखी हों, सब स्वस्थ हों, सभी कल्याणमार्ग के पथिक बन सकें, कोई भी दु:खी न हो।