श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी71. नदिया में प्रेम-प्रवाह और काजीका अत्याचार
दूसरे दिन सभी मिलकर महाप्रभु के निकट आये और उन्होंने रात्रि में जो-जो घटनाएँ हुईं सब कह सुनायी और अंत में कहा- ‘प्रभो! आप तो हमसे संकीर्तन करने के लिये कहते हैं, किंतु हमारे ऊपर संकीर्तन करने से ऐसी-ऐसी विपत्तियाँ आती हैं। अब हमारे लिये क्या आज्ञा होती है। आपकी आज्ञा हो तो हम इस देश को छोड़कर किसी ऐसे देश में चले जायँ, जहाँ सुविधापूर्वक संकीर्तन कर सकें। या आज्ञा हो तो संकीर्तन करना ही बंद कर दें। बहुत-से लोग तो डर के कारण भागे भी जा रहे हैं।’ प्रभु ने कुछ दृढ़ता के साथ रोष में आकर कहा- ‘तुम लोगों को न तो देश का ही परित्याग करना होगा और संकीर्तन को ही बंद करना! तुम लोग जैसे करते रहे हो, उसी तरह संकीर्तन करते रहो। मैं उस क़ाज़ी को और उसके साथियों को देख लूँगा, वे कैसे संकीर्तन को रोकते हैं? तुम लोग तनिक भी न घबड़ाओ।’ प्रभु के ऐसे आश्वासन को सुनकर सभी भक्त अपने-अपने घरों को चले गये। बहुत-से तो प्रभु के आज्ञानुसार पूर्ववत ही संकीर्तन करते रहे। किंतु उनके मन में सदा डर ही बना रहता था। बहुतों ने उसी दिन से संकीर्तन करना बंद ही कर दिया। लोगों को डरा हुआ देखकर प्रभु ने सोचा कि इस प्रकार काम नहीं चलने का। लोग क़ाज़ी के डर से भयभीत हो गये हैं। जब तक मैं क़ाज़ी का दमन न करूँगा, तब तक लोगों का भय दूर न होगा। यह सुनकर पालक आश्चर्य करेंगे कि क़ाज़ी के पास अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित बहुत-सी सेना है, बादशाह की ओर उसे अधिकार प्राप्त है। उसके पास राजबल, धनबल, सैन्यबल तथा अधिकारबल आदि सभी मौजूद हैं। उसका दमन अहिंसाप्रिय, शांत स्वभाव वाले, अस्त्र-शस्त्रहीन, ढोल-करताल के लय के साथ नृत्य करने वाले निमाई पण्डित कैसे कर सकेंगे? इस प्रश्न का उत्तर पाठकों को अगले अध्याय में आप-से-आप ही मिल जायगा। |