श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी32. श्रीविष्णुप्रिया-परिणय
रूपसम्पन्नमग्राम्यं प्रेमप्रायं प्रियंवदम्। बहू के बिना घर सूना-ही-सूना लगता है, इसका अनुभव वही माता कर सकती है, जिसके घर में एक ही पुत्र हो और उसकी सर्वगुणसम्पन्ना पुत्र-वधू परलोकगामिनी हो चुकी हो, उसे चारों ओर से अपना ही घर उजड़ा हुआ-सा दिखायी पड़ता है, घर की लिपी-पुती स्वच्छ दीवालें उसे काटने को दौड़ती हैं। एकलौते पुत्र को देखते ही माता की छाती फटने लगती है और जब-जब पुत्र को स्वयं अपने हाथों से कुछ काम करते देखती है, तभी-तब अश्रुओं से अपनी छाती को भिगोती है। पुत्र-वधू से रहित युवक पुत्र को देखकर माता को महान कष्ट होता है। शचीमाता की भी ऐसी ही दशा थी, जब से लक्ष्मीदेवी परलोकगामिनी हुई हैं, तभी से माता का चित्त उदास रहता है। वे निमाई को देखते ही रोने लगती हैं। निमाई मन-ही-मन सब समझते हैं, किन्तु कुछ कहते नहीं हैं, चुप ही रहते हैं, कहें भी तो क्या कहें? माता को सदा यही चिन्ता रहती है कि निमाई के योग्य कोई सुन्दरी और गुणवती कुलीन कन्या मिल जाय तो मैं जल्दी-से-जल्दी उसका दूसरा विवाह करके अपने घर को पहले की भाँति हरा-भरा, आनन्द उल्लासयुक्त देख सकूँ। वे गंगा-किनारे जब-जब जातीं तभी-तब वहाँ स्नान करने के निमित्त आयी हुई अपनी सजातीय सयानी कन्याओं के ऊपर एक हलकी-सी दृष्टि डालतीं और फिर निगाह नीची कर लेतीं। इस प्रकार वे रोज ही अपनी नवीन पुत्र-वधू की उन कन्याओं में खोज किया करतीं। उन्हीं कन्याओं के बीच में वे एक परम सुन्दरी और सुशीला कन्या को भी देखतीं, वह कन्या प्रायः शचीदेवी को रोज ही मिलती। सुबह, शाम, दोपहर को जब भी शची माता स्नान के निमित्त आतीं तभी उस कन्या को घाट पर देखतीं, कभी तो वह स्नान करती होती, कभी देव-पूजन और कभी-कभी स्नान करके घर को जाती हुई शची देवी को मिलती। वह कन्या शची माता को जब भी देखती तभी वह बड़ी श्रद्धा-भक्ति के साथ प्रणाम करती। शचीदेवी भी प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देतीं- ‘भगवान की कृपा से मेरी बेटी को योग्य पति प्राप्त हो।’ कन्या इस आशीर्वाद को सुनती और लज्जितभाव से नीची निगाह करके चली जाती। एक दिन शचीमाता ने उस कन्या को बुलाकर पूछा- ‘बेटी! तेरा क्या नाम है?’ लजाते हुए नीचे की ओर दृष्टि करते हुए धीरे से कन्या ने कहा- ‘विष्णुप्रिया’। माता ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा- ‘अहा, ‘विष्णुप्रिया’ कैसा सुन्दर नाम है? जैसा सुन्दर शील-स्वभाव है उसी के अनुरूप सुन्दर नाम भी।’ फिर पूछा- ‘बेटी! तेरे पिता का क्या नाम है’? विष्णुप्रिया यह सुनकर चुपचाप ही खड़ी रहीं। उन्होंने इस प्रश्न का कुछ भी उत्तर नहीं दिया। तब शचीमाता ने पुचकारते हुए कहा- ‘बता दे बेटी! बताने में क्या हर्ज है, क्या नाम है तेरे पिता का?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रूप और सदगुणों से सम्पन्न, सभ्या अथवा सदव्यवहार में सुचतुर, अत्यन्त प्रेमयुक्त, सुन्दर वचन बोलने वाली, अच्छे कुल में उत्पन्न हुई तथा पति के मनोऽनुकूल आचरण करने वाली पत्नी बड़े भाग्य से ही मिलती है। सु. र. भां. 336/5