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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
4. गीता में श्रीकृष्ण की भगवत्ता
शास्त्र में भगवत्ता के लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं-
‘जो संपूर्ण प्राणियों के उत्पत्ति-प्रलय एवं आवागमन को और विद्या अविद्या को जानता है, उसका नाम भगवान् है।’ गीता को देखने से पता चलता है कि भगवत्ता के ये सभी लक्षण भगवान् श्रीकृष्ण में विद्यमान हैं; जैसे- भगवान् गीता में कहते हैं- महासर्ग के आदि में मैं अपनी प्रकृति को वश में करके संपूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति करता हूँ और महाप्रलय के समय संपूर्ण प्राणी मेरी प्रकृति को प्राप्त हो जाते हैं।[2] ब्रह्मा जी के दिन के आरंभ में (सर्ग के आदि में) संपूर्ण प्राणी ब्रह्मा जी के सूक्ष्मशरीर से पैदा हो जाते हैं और ब्रह्मा जी की रात के आरंभ में (प्रलय के समय) संपूर्ण प्राणी ब्रह्माजी के सूक्ष्मशरीर में लीन हो जाते हैं।[3] इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण संपूर्ण प्राणियों के उत्पत्ति प्रलय को जानते हैं। भगवान् कहते हैं कि मैं भूतकाल के, वर्तमान के और भविष्य के सभी प्राणियों को जानता हूँ।[4] जो स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा से यज्ञ, दान आदि शुभकर्म करके स्वर्गादि लोकों में जाते हैं, वे उन लोकों में अपने पुण्यों का फल भोगकर पुनः मृत्युलोक में आ जाते हैं।[5] शुक्ल और कृष्ण- ये दो गतियाँ (मार्ग) हैं। इसमें से शुक्लगति से गया हुआ प्राणी लौटकर आता है।[6] आसुर स्वभाव वाले प्राणी बार-बार आसुरी योनियों में जाते हैं और फिर वे उससे भी अधम गति में अर्थात् भयंकर नरकों में चले जाते हैं[7] इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण संपूर्ण प्राणियों के आवागमन को जानते हैं। अर्जुन भगवान् से कहते हैं कि गतियों के विषय में आपके सिवाय दूसरा कोई नहीं बता सकता, आप ही मेरे गतिविषयक संदेह को मिटा सकते हैं।[8] अर्जुन के इस कथन से भी सिद्ध होता है कि प्राणियों की गतियों को, आवागमन को भगवान् श्रीकृष्ण पूर्णतया जानते हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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