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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
3. गीता में ईश्वरवाद
ज्ञातव्य
उत्तर- ईश्वर का नमूना जीवात्मा है; क्योंकि ईश्वर भी नित्य एवं निर्विकार है और जीवात्मा भी नित्य एवं निर्विकार है। परंतु जीवात्मा प्रकृति के वश में हो जाता है और ईश्वर प्रकृति के वश में कभी हुआ नहीं, है नहीं और होगा भी नहीं। सबको अपनी सत्ता का अनुभव होता है कि ‘मैं हूँ।’ इसमें न तो कभी संदेह होता है कि ‘मैं हूँ या नहीं,’ न कभी परीक्षा करते हैं और न कभी अपनी सत्ता की तरफ ध्यान देने से ऐसा अनुभव नहीं होता कि मैं नहीं था। हाँ, इस विषय में ‘पता नहीं है’- ऐसा तो कह सकते हैं, पर ‘मैं नहीं था’- ऐसा नहीं कह सकते; क्योंकि अपनी सत्ता के (अपने-आपके) अभाव का अनुभव किसी को भी नहीं होता। वर्तमान में भी शरीर प्रतिक्षण अभाव में जा रहा है, मिट रहा है, अपने से अलग हो रहा है, पर ‘मैं अभाव में जा रहा हूँ’- ऐसा अनुभव किसी को भी नहीं होता, प्रत्युत यही अनुभव होता है कि शरीर अभाव में जा रहा है। शरीर के अभाव का अनुभव वही कर सकता है जो भावरूप हो। ‘नहीं’ को जानने वाला ‘है’- रूप ही हो सकता है। अतः सिद्ध हुआ कि शरीर के अभाव को जानने वाला स्वयं (जीवात्मा) भावरूप है, सत्-रूप है। देखने सुनने समझने में जो कुछ संसार आता है, वह पहले नहीं था, बाद में नहीं रहेगा और वर्तमान में भी निरंतर अभाव में जा रहा है। संसार जैसा कल था, वैसा आज नहीं है और आज भी एक घंटे पहले जैसा था, वैसा अभी नहीं है। अतः संसार प्रतिक्षण अभाव में जा रहा है, ‘नहीं’ में जा रहा है। परंतु जिसके आधार पर यह परिवर्तनशील संसार टिका हुआ है, ऐसा कोई प्रकाशक, आधार, रचयिता, सर्वसमर्थ तत्त्व है, जिसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। संसार में देश, काल, वस्तु, व्यक्ति परिस्थिति आदि का जो कुछ परिवर्तन होता है, वह सब उस परिवर्तनरहित तत्त्व में ही होता है। जैसे स्वच्छ आकाश में बादल बन जाते हैं, बादलों की घटा बन जाती है, घटा के वर्षोन्मुख होने पर उसमें गर्जना होने लगती है, बिजली चमकने लगती है, जल की बूँदें बरसने लगती हैं, कभी-कभी ओले भी पड़ने लगते हैं; परंतु यह सब होने पर भी आकाश ज्यों का त्यों रहता है। आकाश में कोई परिवर्तन नहीं होता। ऐसे ही ईश्वर आकाश की तरह है। उसमें संसार का उत्पन्न और लीन होना, देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति आदि में परिवर्तन होना आदि विविध क्रियाएं होती हैं, पर वह (ईश्वर) ज्यों का त्यों निर्विकार, परिवर्तन रहित रहता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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