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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
23. गीता में विश्वरूप-दर्शन
भगवान ने अर्जुन को अपना जो विश्वरूप (विराटरूप) दिखाया है, वह किसी साधन का फल नहीं है। भगवान ने स्वयं कहा है कि 'इस प्रकार विश्वरूप वाला मैं वेदाध्ययन, यज्ञानुष्ठान, दान, उग्र तपस्या, तीर्थ, व्रत आदि क्रियाओं से नहीं देखा जा सकता'[1] इस विश्वरूप का दर्शन तो भगवान ही कृपा करके अपनी सामर्थ्य दिव्य दृष्टि देकर दिखा सकते हैं- 'मया प्रसन्नेन....आत्मयोगात्'[2] भगवान ने अपने चतुर्भुज विष्णुरूप के लिये तो अनन्यभक्ति को साधन बताया है,[3] पर विश्वरूप के लिये कोई साधन नहीं बताया, केवल अपनी कृपा को ही साधन बताया है। अर्जुन ने भी नम्रतापूर्वक भगवान से प्रार्थना की थी कि 'हे भगवान! यदि अपका विश्वरूप मेरे द्वारा देखा जा सकता है- ऐसा आप मानते हैं तो आप अपने उस रूप को मुझे दिखा दीजिये'।[4] इस तरह अर्जुन की उत्कण्ठा होने से भगवान ने कृपा करके भगवान भक्तवाञ्छाकल्पतरु हैं। भगवान ने पहले कृपा करके कौसल्या अम्बा, यशोदा मैया, उत्तंक, भीष्म जी आदि को जो विश्वरूप दिखाया था, वह इस प्रकार अल्यन्त भयानक नहीं था। कारण कि इसको देखकर शूरवीर अर्जुन भी भयभीत हो गये और भगवान ने भी इस बात को स्वीकार किया कि 'हे अर्जुन! मैंने तुम को जैसा यह विश्वरूप दिखाया है, वैसा पहले किसी ने भी नहीं देखा है।[5] भगवान् ने अर्जुन को जो विश्वरूप दिखाया है, वह यह दीखने वाला संसार नहीं है। यह संसार तो उस विश्वरूप का आभासमात्र, झलकमात्र है। कारण कि यह संसार नाशवान् और जड है, दिव्य नहीं है परंतु वह विश्वरूप दिव्य है, अविनाशी है, अनन्त है। भगवान् तो अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाते ही चले जा रहे थे, पर अर्जुन उसको देखते-देखते भयभीत हो गये और प्रार्थना करने लगे कि ‘हे भगवन्! पहले कभी न देखे हुए आपके विश्वरूप को देखकर तो मैं हर्षित हो रहा हूँ, पर आपके अत्यंत उग्र और भयंकर रूप को देखकर मेरा मन व्यथित हो रहा है अर्थात् मैं भयभीत हो रहा हूँ अतः आप चतुर्भुज रूप में हो जाइये’।[6] अगर अर्जुन भयभीत होकर भगवान् से चतुर्भुज रूप को दिखाने की प्रार्थना न करते तो भगवान् न जाने और क्या-क्या दिखाते, कैसे कैसे रूप दिखाते, कितने कितने रूपों में अर्जुन के सामने प्रकट होते! इसका कोई पारावार नहीं होता। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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