|
|
|
1.
|
आदि सनातन, हरि
|
1
|
2.
|
बाल-बिनोद भावती
|
2
|
3.
|
हरि-मुख देखि हो
|
3
|
4.
|
गोकुल प्रगट भए
|
4
|
5.
|
उठीं सीख सब मंगल
|
5
|
6.
|
हौं इक नई बात सुनि
|
6
|
7.
|
हौं सखि, नई चाह इक
|
7
|
8.
|
ब्रज भयौ महर कैं पूत
|
8
|
9.
|
आजु नंद के द्वारैं भीर
|
9
|
10.
|
बहुत नारि सुहाग-सुंदरि और घोष
|
10
|
11.
|
आजु बधायौ नंदराइ कैं
|
11
|
12.
|
धनि-धनि नंद-जसोमति
|
12
|
13.
|
सोभा-सिंधु न अंत रही री
|
13
|
14.
|
आजु हो निसान बाजै
|
14
|
15.
|
(माई) आजु हो बधायौ बाजै
|
15
|
16.
|
आजु बधाई नंद कैं माईं
|
16
|
17.
|
आजु गृह नंद महर कैं बधाइ
|
17
|
18.
|
(माई) आजु तौ बधाइ बाजैं
|
18
|
19.
|
कनक-रतन-मनि पालनौ, गढ़ौ काम
|
19
|
20.
|
जसोदा हरि पालनैं झुलावै
|
20
|
21.
|
पलना स्याम झुलावति जननी
|
21
|
22.
|
पालनैं गोपाल झुलावैं
|
22
|
23.
|
हालरौ हलरावै माता। बलि-बलि
|
23
|
24.
|
कन्हैया हालरु रे
|
24
|
25.
|
नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री
|
25
|
26.
|
कन्हैया हालरौ हलरोइ
|
26
|
27.
|
कर पग गहि, अँगुठा मुख मेलत
|
27
|
28.
|
चरन गहे अँगुठा मुख मेलत
|
28
|
29.
|
जसुदा मदन गुपाल सोवावै
|
29
|
30.
|
अजिर प्रभातहिं स्याम कौं, पलिका पौढ़ाए
|
30
|
31.
|
हरषे नंद टेरत महरि
|
31
|
32.
|
महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन
|
32
|
33.
|
जो सुख ब्रज मैं एक घरी
|
33
|
34.
|
यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी
|
34
|
35.
|
जननी देखि, छबि बलि
|
35
|
36.
|
जसुमति भाग-सुहागिनी
|
36
|
37.
|
गोद लिए हरि कौं नँदरानी
|
37
|
38.
|
नंद-घरनि आनँद भरी
|
38
|
39.
|
नान्हरिया गोपाल लाल,
|
39
|
40.
|
जसुमति मन अभिलाष करै
|
40
|
41.
|
हरि किलकत जसुदा की
|
41
|
42.
|
सुत-मुख देखि जसोदा फूली
|
42
|
43.
|
हरि किलकत जसुमति की
|
43
|
44.
|
जननी बलि जाइ हालरु
|
44
|
45.
|
हरि कौ मुख माइ, मोहि
|
45
|
46.
|
लालन, वारी या मुख ऊपर
|
46
|
47.
|
आजु भोर तमचुर के रोल
|
47
|
48.
|
खेलत नँद-आँगन गोबिंद
|
48
|
49.
|
खीझत जात माखन
|
49
|
50.
|
(माई) बिहरत गोपाल राइ
|
50
|
51.
|
बाल बिनोद खरो
|
51
|
52.
|
मैं बलि स्याम, मनोहन
|
52
|
53.
|
किलकत कान्ह घुटुरुवनि
|
53
|
54.
|
नंद-धाम खेलत हरि
|
54
|
55.
|
धनि जसुमति बड़भागिनी
|
55
|
56.
|
हरिकौ बिमल जस गावति
|
56
|
57.
|
चलन चहत पाइनि गोपाल
|
57
|
58.
|
सिखवति चलन जसोदा मैया
|
58
|
59.
|
भावत हरि कौ बाल
|
59
|
60.
|
सूच्छत चरन चलावत
|
60
|
61.
|
बाल-बिनोद आँगन की
|
61
|
62.
|
गहे अँगरिया ललन की
|
62
|
63.
|
कान्ह चलत पग द्वै
|
63
|
64.
|
चलत स्यामघन राजत,
|
64
|
65.
|
भीतर तैं बाहर लौं आवत
|
65
|
66.
|
चलत देखि जसुमति
|
66
|
67.
|
सो बल कहा भयौ भगवान
|
67
|
68.
|
देखो अद्भुत अबिगत की गति
|
68
|
69.
|
साँवरे बलि-बलि बाल-गोबिंद
|
69
|
70.
|
आनँद-प्रेम उमंगि जसोदा
|
70
|
71.
|
हरि हरि हँसत मैरौ
|
71
|
72.
|
झुनक स्याम की
|
72
|
73.
|
चलत लाल पैजनि
|
73
|
74.
|
मैं देख्यौं जसुदा कौ नंदन
|
74
|
75.
|
जब तैं आँगन खेलत
|
75
|
76.
|
जसोदा, तेरौ चिरजीवहु
|
76
|
77.
|
मैं मोही तेरैं लाल री
|
77
|
78.
|
कल बल कै हरि
|
78
|
79.
|
जब दधि-मथनी
|
79
|
80.
|
जब दधि-रिपु हरि
|
80
|
81.
|
जब मोहन कर गही मथानी
|
81
|
82.
|
नंद जू के बारे कान्ह, छाँड़ि दै
|
82
|
83.
|
जसुमति दधि मथन करति
|
83
|
84.
|
(एरी) आनँद सौं दधि मथति
|
84
|
85.
|
त्यौं-त्यौं मोहन नाचै ज्यौं-ज्यौं
|
85
|
86.
|
प्रात समय दधि मथति जसोदा
|
86
|
87.
|
गोद खिलावति कान्ह सुनी
|
87
|
88.
|
कहन लागे मोहन मैया-मैया
|
88
|
89.
|
माखन खात हँसत किलकत हरि
|
89
|
90.
|
बेद-कमल-मुख परसति जननी
|
90
|
91.
|
सोभा मेरे स्यामहि पै सोहै
|
91
|
92.
|
बाल गुपाल! खेलौ मेरे तात
|
92
|
93.
|
पलना झूलौ मेरे लाल पियारे
|
93
|
94.
|
क्रीड़त प्रात समय दोउ बीर
|
94
|
95.
|
कनक-कटोरा प्रातहीं, दधि घृत
|
95
|
96.
|
गोपालराइ दधि माँगत अरु
|
96
|
97.
|
हरि-कर राजत माखन-रोटी
|
97
|
98.
|
दोउ भैया मैया पै माँगत
|
98
|
99.
|
तनक दै री माइ, माखन तनक
|
99
|
100.
|
नैकु रहौ, माखन द्यौं
|
100
|
101.
|
बातनिहीं सुत लाइ लियौ
|
101
|
102.
|
दधि-सुत जामे नंद-दुवार।
|
102
|
103.
|
कजरी कौ पय पियहु लाल
|
103
|
104.
|
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी
|
104
|
105.
|
मैया, मोहि बड़ौ करि
|
105
|
106.
|
हरि अपनै आँगन कछु
|
106
|
107.
|
आजु सखी, हौं प्रात समय दधि
|
107
|
108.
|
बलि-बलि जाउँ मधुर सुर
|
108
|
109.
|
पाहुनी, कर दै तनक मह्यौ
|
109
|
110.
|
मोहन, आउ तुम्हैं अन्हवाऊँ।
|
110
|
111.
|
जसुमति जबहिं कह्यौ अन्हवावन
|
111
|
112.
|
ठाढ़ी अजिर जसोदा अपनै
|
112
|
113.
|
किहिं बिधि करि कान्हहि
|
113
|
114.
|
(आछे मेरे) लाल हो
|
114
|
115.
|
बार-बार जसुमति सुत बोधति
|
115
|
116.
|
(मेरौ माई) ऐसौ हठी बाल गोबिंदा
|
116
|
117.
|
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना
|
117
|
118.
|
मैया री मैं चंद लाहौंगौ
|
118
|
119.
|
लै लै मोहन, चंदा लै
|
119
|
120.
|
तुव मुख देखि डरत ससि भारी
|
120
|
121.
|
जसुमति लै पलिका पौढऋावति। मरौ।
|
121
|
122.
|
सुनि सुत, एक कथा कहौं प्यारी
|
122
|
123.
|
नाहिनै जगाइ सकत, सुनि
|
123
|
124.
|
जागिए, व्रजराज-कुँवर
|
124
|
125.
|
प्रात समय उठि, सोवत सुत
|
125
|
126.
|
जागिए गोपाल लाल, आनँद-निधि
|
126
|
127.
|
प्रात भयौ, जागौ गोपाल
|
127
|
128.
|
जागौ, जागौ हो गोपाल
|
128
|
129.
|
उठौ नँदलाल भयौ भिनुसार
|
129
|
130.
|
तुम जागौ मेरे लाड़िले, गोकुल-सुखदाई
|
130
|
131.
|
भोर भयौ जागौ नँद-नंद
|
131
|
132.
|
कौन परी मेरे लालहि बानि
|
132
|
133.
|
जागिये गुपाल लाल! ग्वाल
|
133
|
134.
|
सो सुख नंद भाग्य तैं पायौ
|
134
|
135.
|
खेलत स्याम ग्वालनि संग
|
135
|
136.
|
सखा कहत हैं स्याम खिसाने
|
136
|
137.
|
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ
|
137
|
138.
|
मोहन, मानि मनायौ मेरौ
|
138
|
139.
|
खेलन अब मेरी जाइ बलैया
|
139
|
140.
|
खेलन चलौ बाल गोबिंद!
|
140
|
141.
|
खेलन कौं हरि दूरि गयौ री
|
141
|
142.
|
खेलन दूरि जात कत कान्हा
|
142
|
143.
|
दूरि खेलन जनि जाहु लला मेरे
|
143
|
144.
|
जसुमति कान्हहि यहै सिखावति
|
144
|
145.
|
नंद बुलावत हैं गोपाल
|
145
|
146.
|
जेंवत कान्ह नंद इकटौरे
|
146
|
147.
|
साँझ भई घर आवहु प्यारे
|
147
|
148.
|
बल-मोहन दोउ करत बियारी
|
148
|
149.
|
कीजै पान लला रे यह लै
|
149
|
150.
|
बल-मोहन दोऊ अलसाने
|
150
|
151.
|
माखन बाल गोपालहि भावै
|
151
|
152.
|
भोर भयौ मेरे लाड़िले
|
152
|
153.
|
भोर भयौ जागो नँदनंदन
|
153
|
154.
|
न्हात नंद सुधि करी स्याम
|
154
|
155.
|
कोउ माई बोलि लेहु गोपालहि
|
155
|
156.
|
हरि कौं टेरति है नँदरानी
|
156
|
157.
|
बोलि लेहु हलधर भैया कौं
|
157
|
158.
|
हरि तब अपनी आँखि मुँदाई
|
158
|
159.
|
पौढ़िऐ मैं रचि सेज बिछाई
|
159
|
160.
|
खेलन जाहु बाल सब टेरत
|
160
|
161.
|
खोलत बनैं घोष निकास
|
161
|
162.
|
खेलत मैं को काको गुसैयाँ
|
162
|
163.
|
आवहु, कान्ह, साँझ की बेरिया
|
163
|
164.
|
आँगन मैं हरि सोइ गए री
|
164
|
165.
|
ब्रज घर-घर बूझत नँद-राउर
|
165
|
166.
|
पाँड़े नहिं भोग लगावन पावै
|
166
|
167.
|
सफल जन्म, प्रभु आजु भयौ
|
167
|
168.
|
अहो नाथ! जेइ-जेइ सरन आए
|
168
|
169.
|
मया करिये कृपाल, प्रतिपाल
|
169
|
170.
|
खेलत स्याम पौरि कैं बाहर
|
170
|
171.
|
मोहन काहैं न उगिलौ माटी
|
171
|
172.
|
मो देखत जसुमति तेरैं ढोटा
|
172
|
173.
|
नंदहि कहति जसोदा रानी
|
173
|
174.
|
कहत नंद समुमति सौं बात
|
174
|
175.
|
देखौ री! जसुमति बौरानी
|
175
|
176.
|
गोपाल राइ चरननि हौं काटी
|
176
|
177.
|
मैया री, मोहि माखन भावै
|
177
|
178.
|
गए स्याम तिहि ग्वालिनि
|
178
|
179.
|
फूली फिरति ग्वालि मन मैं री
|
179
|
180.
|
आजु सखी मनि-खंभ-निकट
|
180
|
181.
|
प्रथम करी हरि माखन-चोरी
|
181
|
182.
|
सखा सहित गए माखन-चोरी
|
182
|
183.
|
चकित भई ग्वालिनि तन हेरौ
|
183
|
184.
|
ब्रज घर-घर प्रगटी यह बात
|
184
|
185.
|
चली ब्रज घर-घरनि यह बात
|
185
|
186.
|
गोपालहि माखन खान दै
|
186
|
187.
|
जसुदा कहँ लौं कीजै कानि
|
187
|
188.
|
माई! हौं तकि लागि रही
|
188
|
189.
|
आपु गए हरुएँ सूनैं घर
|
189
|
190.
|
गोपाल दुरे हैं माखन खात
|
190
|
191.
|
ग्वालिनि जौ घर देखै आइ
|
191
|
192.
|
जौ तुम सुनहु सजोदा गोरी
|
192
|
193.
|
देखी ग्वालि जमुना जात
|
193
|
194.
|
महरि! तुम मानौ मेरी बात
|
194
|
195.
|
साँवरेहि बरजति क्यौं जु नहीं
|
195
|
196.
|
अब ये झूठहु बोलत लोग
|
196
|
197.
|
मेरौ गोपाल तनक, सौ
|
197
|
198.
|
कहै जानि ग्वारिनि! झूठी बात
|
198
|
199.
|
मेरे लाड़िले हो! तुम जाउ
|
199
|
200.
|
इन अँखियनि आगैं तैं मोहन
|
200
|
201.
|
चोरी करत कान्ह धरि पाए
|
201
|
202.
|
कत हो कान्ह! काहु कैं जात।
|
202
|
203.
|
घर गोरस जनि जाहु पराए
|
203
|
204.
|
(कान्ह कौं) ग्वालिनि! दोष
|
204
|
205.
|
गए स्याम ग्वालिनि-घर सूनैं
|
205
|
206.
|
ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ
|
206
|
207.
|
करत कान्ह ब्रज-घरनि
|
207
|
208.
|
मेरौ माई! कौन कौ दधि चोरै।
|
208
|
209.
|
अपनौं गाउँ लेउ नँदरानी
|
209
|
210.
|
लोगनि कहत झुकति तू बौरी
|
210
|
211.
|
महरि तैं बड़ी कृपन है माई
|
211
|
212.
|
अनत सुत! गोरस कौ कत जात
|
212
|
213.
|
हरि सब भाजन फोरि पराने
|
213
|
214.
|
कन्हैया! तू नहिं मोहि डरात
|
214
|
215.
|
सुनु री ग्वारि! कहौं इक बात
|
215
|
216.
|
तेरैं लाल मैरौ माखन खायौ
|
216
|
217.
|
अनत सुत! गोरस कौ कत जात
|
217
|
218.
|
मैया मैं नहि माखन खायौ
|
218
|
219.
|
तेरी सौं सुनु-सुनु मेरी मैया
|
219
|
220.
|
हाँ लगि नैकु चलौ नँदरानी
|
220
|
221.
|
सुनि-सुनि री तैं महरि जसोदा
|
221
|
222.
|
नंद-घरनि! सुत भलौ पढ़ायौ
|
222
|
223.
|
ऐसी रिस मैं जो धरि पाऊँ
|
223
|
224.
|
जसुमति रिस करि-करि
|
224
|
225.
|
जसोदा! एतौ कहा रिसानी
|
225
|
226.
|
बाँधौं आजु, कौन तोहि छोरैं
|
226
|
227.
|
जाहु चली अपनैं-अपनैं घर
|
227
|
228.
|
जसुदा! तेरौं मुख हरि जोवै
|
228
|
229.
|
देखौ माई! कान्ह हिलकियनि
|
229
|
230.
|
(माई) नैकुहूँ न दरद करति
|
230
|
231.
|
कुँवर जल लोचन भरि
|
231
|
232.
|
हरि के बदन तन धौं चाहि
|
232
|
233.
|
मुख-छबि देखि हो नँद-घरनि
|
233
|
234.
|
मुख-छबि कहा कहौं बनाइ
|
234
|
235.
|
हरि-मुख देखि हो नँद-नारि
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235
|
236.
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कहौ तौ माखन ल्यावैं घर
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236
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237.
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कहन लागीं अब बढ़ि-बढ़ि बात
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237
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238.
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कहा भयौ जौ घर कैं लरिका
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238
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239.
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चित दै चितै तनय-मुख ओर
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239
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240.
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जसुदा! देखि सुत की ओर
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240
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241.
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चितै धौं कमल-नैन
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241
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242.
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देखि री देखि हरि बिलखात
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242
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243.
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कब के बाँधे ऊखल दाम
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243
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244.
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वारौं हौं वे कर जिन हरि
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244
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245.
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(जसोदा) तेरौ भलौ
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245
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246.
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देखि री नंद-नंदन ओर
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246
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247.
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तब तैं बाँधे ऊखल आनि
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247
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248.
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कान्ह सौ आवत क्योंऽब
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248
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249.
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जसुदा! यह न बूझि कौ
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249
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250.
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ऐसी रिस तोकौं नँदरानी
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250
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251.
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हलधर सौं कहि ग्वालि
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251
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252.
|
यह सुनि कै हलधर तहँ
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252
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253.
|
एतौ कियौ कहा रही मैया
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253
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254.
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काहे कौं कलह नाध्यौ
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254
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255.
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काहे कौं जसोदा मैया
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255
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256.
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जसुदा तोहिं बाँधि क्यौं
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256
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257.
|
काहे कौं हरि इतनौ
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257
|
258.
|
सुनहु बात मेरी बलराम
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258
|
259.
|
कहा करौं हरि बहुत
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259
|
260.
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जसोदा! कान्हहु तैं
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260
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261.
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जसोदा ऊखल बाँधे स्याम
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261
|
262.
|
निरखि स्याम हलधर
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262
|
263.
|
जसुमति, किहिं यह सीख
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263
|
264.
|
तबहिं स्याम इक बुद्धि उपाई
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264
|
265.
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धनि गोबिंद जो गोकुल आए
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265
|
266.
|
मोहन! हौं तुम ऊपर वारी
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266
|
267.
|
अब घर काहू कैं जनि
|
267
|
268.
|
ब्रज-जुबती स्यामहि उन लावतिं
|
268
|
269.
|
मोहि कहतिं जुबती सब चोर
|
269
|
270.
|
जसुमति कहति कान्ह मेरे प्यारे
|
270
|
271.
|
धेनु दुहत हरि देखत ग्वालनि
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271
|
272.
|
मैं दुहिहौं मोहि दुहन
|
272
|
273.
|
जागौ हो तुम नँद-कुमार
|
273
|
274.
|
जागहु हो ब्रजराज हरी
|
274
|
275.
|
जागहु लाल, ग्वाल सब टेरत
|
275
|
276.
|
जननि जगावति, उठौ कन्हाई
|
276
|
277.
|
दाऊ जू, कहि स्याम पुकारौ
|
277
|
278.
|
जागहु-जागहु नंद-कुमार
|
278
|
279.
|
तनक कनक की दोहनी
|
279
|
280.
|
आजु मैं गाइ चरावन जेहौं
|
280
|
281.
|
मैया! हौं गाइ चरावन जैहौं
|
281
|
282.
|
चले सब गाइ चरावन ग्वाल
|
282
|
283.
|
खेलत कान्ह चले ग्वालनि
|
283
|
284.
|
बृंदाबन देख्यौ नँद-नंदन अतिहिं
|
284
|
285.
|
बन तैं आवत धेनु चराए।
|
285
|
286.
|
जसुमति दौरि लिए हरि
|
286
|
287.
|
मैं अपनी सब गाई चरैहौं
|
287
|
288.
|
बहुतै दुख हरि सोइ गयौ री
|
288
|
289.
|
पौढ़े स्याम जननि गुन
|
289
|
290.
|
करहु कलेऊ कान्ह पियारे
|
290
|
291.
|
मैया री मोहि दाऊ टेरत
|
291
|
292.
|
बोलि लियौ बलरामहि
|
292
|
293.
|
अति आनंद भए हरि धाए
|
293
|
294.
|
नंद महर के भावते, जागौ
|
294
|
295.
|
लालहि जगाइ बलि गई
|
295
|
296.
|
उठे नंद-लाल सुनत जननी
|
296
|
297.
|
दोउ भैया जेंवत माँ आगैं
|
297
|
298.
|
(द्वारैं) टेरत हैं सब ग्वाल
|
298
|
299.
|
बन पहुँचत सुरभी लइँ
|
299
|
300.
|
चले सब बृंदाबन समुहाइ
|
300
|
301.
|
गैयनि घेरि सखा सब
|
301
|
302.
|
चरावत बृंदाबन हरि धेनु
|
302
|
303.
|
बृंदाबन मोकौं अति भावत
|
303
|
304.
|
ग्वाल सखा कर जोरि
|
304
|
305.
|
काँधे कान्ह कमरिया कारी
|
305
|
306.
|
वै मुरली की टेर सुनावत
|
306
|
307.
|
हरि आवत गाइनि के पाछे
|
307
|
308.
|
आजु हरि धेनु चराए
|
308
|
309.
|
आजु बने बन तैं ब्रज आवत
|
309
|
310.
|
बल-मोहन बन तैं दोउ आए
|
310
|
311.
|
मैया! हौं न चरैहौं गाइ
|
311
|
312.
|
मैया! बहुत बुरौ बलदाऊ
|
312
|
313.
|
तुम कम गाइ चरावन जात
|
313
|
314.
|
माँगि लेहु जो भावै प्यारे
|
314
|
315.
|
सुनि मैया, मैं तो पय पीवौं
|
315
|
316.
|
आछौ दूध पियौ मेरे तात
|
316
|
317.
|
ये दोऊ मेरे गाइ-चरैया।
|
317
|
318.
|
सोवत नींद आइ गई स्यामहि
|
318
|
319.
|
देखत नंद कान्ह अति सोवत
|
319
|
320.
|
जागियै गोपाल लाल, प्रगट भई
|
320
|
321.
|
हेरी देत चले सब बालक
|
321
|
322.
|
चले बन धेनु चारह कान्ह
|
322
|
323.
|
रुम चढ़ि काहे न टेरौ
|
323
|
324.
|
जब सब गाइ भईं इक ठाई
|
324
|
325.
|
अब कैं राखि लेहु गोपाल
|
325
|
326.
|
देखौ री नँद-नंदन आवत
|
326
|
327.
|
रजनी-मुख बन तैं बने आवत
|
327
|
328.
|
दै री मैया दोहनी, दुहिहौं मैं गैया
|
328
|
329.
|
बाबा मोकौं दुहन सिखायौ
|
329
|
330.
|
जननि मथति दधि, दुहत कन्हाई
|
330
|
331.
|
राखि लियौ ब्रज नंद-किसोर
|
331
|
332.
|
देखौ माई! बदरनि की बरियाई
|
332
|
333.
|
(तेरैं) भुजनि बहुत बल होइ
|
333
|
334.
|
जयति नँदलाल जय जयति
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334
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335.
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जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि
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335
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अंतिम पृष्ठ
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