- महाभारत भीष्म पर्व में भीष्मवध पर्व के अंतर्गत 50वें अध्याय में 'धृष्टद्युम्न का उत्साह और क्रौंचारुण व्यूह की रचना' का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
युधिष्ठिर का धृष्टद्युम्न को समझाना
संजय कहते हैं- राजन! युद्ध में युधिष्ठिर की चिंता देखकर श्रीकृष्ण उनको आश्वासन देते हैं और कहते हैं कि ‘ये द्रुपदपुत्र महाबली धृष्टद्युम्न सदा आपका हित चाहते हैं और आपके प्रिय साधन में तत्पर होकर ही इन्होनें प्रधान सेनापति का गुरुतर भार ग्रहण किया है। यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने उस सभा में महारथी धृष्टद्युम्न से कहा- ‘आदरणीय वीर धृष्टद्युम्न! मैं तुमसे जो कुछ कहता हूं, इसे ध्यान देकर सुनो। मेरे कहे हुए वचनों को तुम्हें उल्लंघन नही करना चाहिये। ‘तुम मेरे सेनापति हो, भगवान श्रीकृष्ण के समान पराक्रमी हो। पुरुषरत्न! पूर्वकाल भगवान कार्तिकेय जिस प्रकार देवताओं के सेनापति हुए थे, उसी प्रकार तुम भी पाण्डवों के सेनानायक होओ’। युधिष्ठिर का यह कथन सुनकर समस्त पाण्डव और महारथी भूपालगण सब-के-सब ‘साधु-साधु’ कहकर उनके इन वचनों की सराहना करने लगे। तत्पश्चात् राजा युधिष्ठिर ने पुनः महाबली धृष्टद्युम्न से कहा-‘पुरुषसिंह! तुम पराक्रम करके कौरवों का नाश करो। मारिष! नरश्रेष्ठ! मैं, भीमसेन, श्रीकृष्ण, माद्रीकुमार नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पांचों पुत्र तथा अन्य प्रधान-प्रधान भूपाल कवच धारण करके तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे’।
तब धृष्टद्युम्न ने सबका हर्ष बढाते हुए कहा- ‘पार्थ! मुझे भगवान शंकर ने पहले ही द्रोणाचार्य का काल बनाकर उत्पन्न किया है। पृथ्वीपते! आज समरांगण में मैं भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, शल्य तथा जयद्रथ- इन समस्त अभिमानी योद्धाओं का सामना करूंगा।
क्रौंचारुण व्यूह की रचना करना
यह सुनकर युद्ध के लिये उन्मत्त रहने वाले महान् धनुर्धर पाण्डवों ने उच्चस्वर में सिंहनाद किया तथा शत्रुसुदन नृपश्रेष्ठ द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न के इस प्रकार युद्ध के लिये उद्यत होने पर कुन्तीकुमार युधिष्ठिर ने सेनापति द्रुपदकुमार से पुनः इस प्रकार कहा- ‘सेनापति! क्रौंचारुण नामक व्यूह समस्त शत्रुओं का संहार करने वाला है जिसे बृहस्पति ने देवासुर-संग्राम के अवसर पर इन्द्र को बताया था। शत्रुसेना का विनाश करने वाले उस क्रोचारूप व्यूह का तुम यथावत् रूप से निर्माण करो। आज समस्त राजा कौरवों के साथ उस अदृष्टपूर्व व्यूह को अपनी आंखों से देखे’।[1] जैसे वज्रधारी इन्द्र भगवान विष्णु से कुछ कहते हो, उसी प्रकार नरदेव युधिष्ठिर पूर्वोक्तबात कहने पर व्यूहरचना में कुशल धृष्टद्युम्ने बृहस्पति की बतायी हुई विधि से प्रातःकाल (सूर्योदय पूर्व) ही समस्त सेनाओं का व्यूह निर्माण किया उन्होंने सबसे आगे अर्जुन को खड़ा किय। उनका अद्भुत एवं मनोरम ध्वज सूर्य के पथ में (ऊॅचे आकाश में) फहरा रहा था। इन्द्र के आदेश से साक्षात विश्वकर्मा ने उसका निर्माण किया था। इन्द्रधनुष के रंग की पताकाएं उस ध्वज की शोभा बढ़ाती थी। वह ध्वज आकाश में आकाशचारी पक्षी की भाँति बिना आधार के ही चलता था। वह दूसरे गन्धर्व नगर के समान जान पड़ता था। आर्य! रथ के मार्गो पर अर्जुन का वह ध्वज नृत्य करता-सा प्रतीत होता था उस रत्नयुक्त ध्वज से अर्जुन की और गाण्डीवधारी अर्जुन से उस ध्वज की बड़ी शोभा होती थी, ठीक उसी तरह जैसे मेरु पर्वत से सूर्य की और सूर्य से मेरु पर्वत की शोभा होती है।[2]
राजन्! अपनी विशाल सेना के साथ राजा द्रुपद उस व्यूह के सिर के स्थान पर थे। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु यह दोनों नरेश नेत्रों के स्थान पर प्रतिष्ठित हुए। भरतश्रेष्ठ! दाशार्णक, दाशेरक समूहों के साथ प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान में खडे़ किये गये। पटचर, पौण्ड्र, पौरव तथा निषादों के साथ स्वयं राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में स्थित हुए। भीमसेन और धृष्टद्युम्न क्रोचपक्षी के दोनों पंखों के स्थान पर नियुक्त किये गये। राजन्! द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु और महारथी सात्यकि के साथ पिशाच, दारद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारूत, धेनुक, तरंग, परतगण, बाह्रिक, तित्तिर, चोल तथा पाण्डय- इन जनपदों के लोग दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खडे़ हुए। अग्निवेश्य, हुण्ड, मालव, दानभारि, शबर, उद्रस, वत्स तथा नाकुल जनपदों के साथ दोनों भाई नकुल और सहदेव ने बायें पंख का आश्रय लिया। उस क्रौचपक्षी के पंखभाग में दस हजार, शिरोभाग में एक लाख[3], पृष्ठभाग में एक अर्बुद[4] बीस हजार तथा ग्रीवा भाग में एक लाख सत्तर हजार रथ मौजूद थे। राजन्! पक्ष[5], कोटि।[6], प्रपक्ष[7] तथा पक्षान्त-भागों में चलते-फिरते पर्वतों के समान हाथियों के झुंड चले। वे सब-के-सब सेनाओं से घिरे हुए थे। राजा विराट केकय राजकुमारों के साथ उस व्यूह के जघन (कटि के अग्रभाग) की रक्षा करते थे। काशिराज और शैव्य भी तीस हजार रथियों के साथ उसी की रक्षा में तत्पर थे। भारत! इस प्रकार पाण्डव क्रौचारूण नामक महाव्यूह की रचना करके सूर्योदय की प्रतिक्षा करते हुए युद्ध के लिये कवच आदि से सुसज्जित हो खडे़ हो गये। उनके हाथियों और रथों के ऊपर सूर्य के समान प्रकाशमान, निर्मल एवं महान् श्वेतच्छत्र शोभा पा रहे थे।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 50 श्लोक 20-41
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 50 श्लोक 42-58
- ↑ यहाँ 'नियुत' का अर्थ एक लाख किया गया है। किसी-किसी मत में उसका अर्थ दस लाख भी है।
- ↑ दस करोड़ की संख्या को अर्बुद कहते हैं।
- ↑ पंख।
- ↑ अग्रभाग।
- ↑ पंख के भीतर के छोटे-छोटे पंख।
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| शकुनि की घुड़सवार सेना की पराजय
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| कौरव-पांडव सैनिकों का भीषण युद्ध
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| अर्जुन द्वारा भीष्म की प्यास बुझाना
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