पंचाशत्तम (50) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 42-58 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! अपनी विशाल सेना के साथ राजा द्रुपद उस व्यूह के सिर के स्थान पर थे। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु यह दोनों नरेश नेत्रों के स्थान पर प्रतिष्ठित हुए। भरतश्रेष्ठ! दाशार्णक, दाशेरक समूहों के साथ प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान में खडे़ किये गये। पटचर, पौण्ड्र, पौरव तथा निषादों के साथ स्वयं राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में स्थित हुए। भीमसेन और धृष्टद्युम्न क्रोचपक्षी के दोनों पंखों के स्थान पर नियुक्त किये गये। राजन्! द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु और महारथी सात्यकि के साथ पिशाच, दारद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारूत, धेनुक, तरंग, परतगण, बाह्लीक, तित्तिर, चोल तथा पाण्ड्य- इन जनपदों के लोग दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खडे़ हुए। अग्निवेश्य, हुण्ड, मालव, दानभारि, शबर, उद्रस, वत्स तथा नाकुल जनपदों के साथ दोनों भाई नकुल और सहदेव ने बायें पंख का आश्रय लिया। उस क्रौचपक्षी के पंखभाग में दस हजार, शिरोभाग में एक लाख[1], पृष्ठभाग में एक अर्बुद[2] बीस हजार तथा ग्रीवा भाग में एक लाख सत्तर हजार रथ मौजूद थे। राजन्! पक्ष (पंख) कोटि (अग्रभाग), प्रपक्ष (पंख के भीतर के छोटे-छोटे पंख) तथा पक्षान्त-भागों में चलते-फिरते पर्वतों के समान हाथियों के झुंड चले। वे सब-के-सब सेनाओं से घिरे हुए थे। राजा विराट केकय राजकुमारों के साथ उस व्यूह के जघन (कटि के अग्रभाग) की रक्षा करते थे। काशिराज और शैव्य भी तीस हजार रथियों के साथ उसी की रक्षा में तत्पर थे। भारत! इस प्रकार पाण्डव क्रौचारूण नामक महाव्यूह की रचना करके सूर्योदय की प्रतिक्षा करते हुए युद्ध के लिये कवच आदि से सुसज्जित हो खडे़ हो गये। उनके हाथियों और रथों के ऊपर सूर्य के समान प्रकाशमान, निर्मल एवं महान् श्वेतच्छत्र शोभा पा रहे थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में क्रौचव्यूहनिर्माण विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यहाँ 'नियुत' का अर्थ एक लाख किया गया है। किसी-किसी मत में उसका अर्थ दस लाख भी है।
- ↑ दस करोड़ की संख्या को अर्बुद कहते हैं।
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