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राग जैजैवंती
(सखी!) आज तो व्रजराज के भवन में बधाई बज रही है। गोपियाँ और गोप उत्फुल्ल हुए रुक-रुककर (आनन्दक्रीड़ा करते ) घूम रहे हैं। गायें गोष्ठों में आनन्दमग्न घूम रही हैं, गोपियों के अंग-अंग पुलकित हैं। आनन्दोल्लास से सभी वृक्ष फूल उठे और फलित हो गये हैं। द्वारपर वन्दीजन प्रफुल्लित हैं, प्रफुल्लित फूलों के बन्दनवार बाँधे गये हैं, आज गोकुलनगर मे जो जहाँ है, वहीं प्रफुल्लित फूलों के बन्दनवार बाँधे गये हैं, आज गोकुलनगर में जो जहाँ है, वहीं प्रफुल्लित हो रहा है। यदुकुल के लोग आनन्द से उल्लसित घूम रहे हैं, उनके पिछले जन्मों के पुण्य आज अपने मूल के साथ अंकुरित होकर फूल उठे हैं (उनके जन्म-जन्मान्तर के पुण्यों का फल उदय हो गया है)। यमुना का जल उमंग में उमड़ रहा है, कुन्जों के समूह प्रफुल्लित हो गये हैं, मेघों के बड़े-बड़े काले-काले समूह गर्जना कर रहे हैं, कामदेव उल्लसित होकर नाच रहा है, रति के अंग-अंग उल्लसित हैं (कि अब मेरे पति अनंग को शरीर प्राप्त होगा।) वे श्रीकृष्णचन्द्र के पुत्र बन सकेंगे। बड़े भाई श्रीबलरामजी के चित्त की सभी अभिलाषाएँ उत्फुल्ल हो गयी (पूर्ण हो गयी) हैं। ब्राह्मण, सत्पुरुष और वेद उल्लसित हैं, उनका कंस से होनेवाला भय दूर हो गया है। सूरदासजी कहते हैं कि सभी (घरों से) बाहर निकलकर बधाई गा रहे हैं। श्रीयशोदारानी प्रफुल्लित हो रहीं हैं, साक्षात् शांर्गपाणि श्रीहरि उनके पुत्र होकर प्रकट हुए हैं। उदार व्रजराज प्रफुल्लित हैं, आज उनके भवन का सौभाग्य फलशाली हो गया (भवन में पुत्र आ गया ) है।
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