विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 30
3. जनमेजय का नाग-यज्ञ
गरुड़ ने दो वर मांगे-एक यह कि मैं अंतरिक्ष में आपसे ऊपर रहूँ और दूसरा यह कि अमृत के बिना भी मैं अजर-अमर बनूं। विष्णु से ये दो वर प्राप्त कर गरुड़ ने कहा, “मैं भी आपको वर देना चाहता हूँ। आपको जो रुचे वह मांग लें।” तब विष्णु ने यह वर मांगा कि महाबली गरुड़ उनके वाहन हों, और गरुड़ के मांगे हुए वर को निभाने के लिए उन्होंने गरुड़ को अपने ध्वज पर स्थान दिया, जिससे विष्णु का ध्वज गरुड़-ध्वज नाम से प्रसिद्ध हुआ। नारायण और गरुड़ में यह बातचीत हो ही रही थी कि अमृत के चले जाने से खीझे इन्द्र ने लपककर अपना वज्र गरुड़ पर चला दिया। गरुड़ ने हंसते हुए कहा, “हे इन्द्र, जिन दधीचि की हड्डियों से यह अस्त्र बना है, उन ऋषि का, वज्र का और हे शतक्रतु, तुम्हारा भी मैं मान करता हूं, किन्तु देखो, यह एक अपना पखना तुम्हारे सामने डालता हूं, इसका तुम अन्त पा जाओ तो जानूं। तुम्हारे इस वज्र की चोट से मुझे क्या पीड़ा होने वाली है।” इतना सुनना था कि किरीटी देवेन्द्र को तीन त्रिलोक ही दिखाई देने लगे और उसने तुरन्त गरुड़ से मैत्री जोड़कर याचना की, “आपको सोम से क्या प्रयोजन? कृपा करके मेरा सोम मुझे लौटा दें। आप जिन्हें इसे दे देंगे वे फिर मुझे बाधा पहुँचायेंगे।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज