विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 29
3. जनमेजय का नाग-यज्ञ
इस प्रकार की प्रदीप्त स्तुतियों के पात्र महान इन्द्र पुराणों में अन्य प्रकार के देवता बन जाते हैं। फिर उनकी स्तुति के प्रसंग नहीं आते। अतएव महाभारत के इस इन्द्र-स्तोत्र में प्राचीन वैदिक शब्दों और अभिप्रायों की गूंज भली मालूम होती हैः इसी प्रकार कद्रू के स्तोत्र से प्रसन्न हुए हरिवाहन इन्द्र ने नील मेघों के समूह से व्योम को भर दिया और समस्त पृथ्वी चारों ओर सलिल से भर गई। इसी गरुड़ोपाख्यान में एक अभिप्राय यह भी आया है कि तपोधन बालखिल्य मुनियों को गोष्पद-मात्र जल में डूबते-उतराते देखकर इन्द्र ने उनका उपहास किया। उससे उत्तप्त होकर उन मुनियों ने इन्द्र को नीचा दिखाने के लिए कश्यप और विनता से गरुड़ और उसके भाई अरुण को उत्पन्न किया। पीछे कश्यप के कहने से यह समझौता हुआ कि गरुड़ पक्षियों के इन्द्र होंगे और स्वर्ग के राजा इन्द्र उन्हें भाई मानेंगे। इन्द्र को समझाया गया कि उन्हें इस प्रकार ब्रह्मवादी ऋषियों की अवमानना न करनी चाहिए। स्वर्ग में अमृत के रक्षकों को परास्त कर गरुड़ अमृत का घट ले आये, और आकाश में विष्णु से उनकी भेंट हुई। अमृत ले आने पर भी गरुड़ ने स्वयं उसे जूठा नहीं किया, इससे विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने गरुड़ से वर मांगने को कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदि. 21।7-17
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज