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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 159
यह आश्रम गन्धमादन के समीप था। वहीं पर्वत की चोटी पर कुबेर के अनेक यक्ष और राक्षसों से भीम का घमासान युद्ध हुआ, जिसमें कुबेर के अनेक अनुयायी काम आये और कुबेर का मित्र मणिमान नामक राक्षस भी मारा गया। कुबेर ने समाचार जानकर पहले तो कुछ क्रोध किया, पर पीछे स्वयं युधिष्ठिर को शान्त किया कि वह भीम के प्रति रुष्ट न हों; क्योंकि भीम ने दैव के वश होकर ही यह कर्म किया था और ऐसा करके अगस्त्य ऋषि के एक पुराने शाप से कुबेर को मुक्त किया था। युधिष्ठिर के पूछने पर कुबेर ने बताया कि मणिमान नामक मेरे मित्र ने यमुना के किनारे तप करते हुए अगस्त्य ऋषि के ऊपर थूक दिया था, जिसके कारण उसे ऋषि के शाप का फल भोगना पड़ा। इन बाल-सुलभ कहानियों के बीच में मुख्य बात, कुबेर के साथ युधिष्ठिर की भेंट है। कुबेर की राजधानी के इतने समीप पहुँचकर यह सम्मिलन आवश्यक था। इस अवसर पर कुबेर ने युधिष्ठिर को राजनीति सम्बन्धी कुछ मूल्यवान उपदेश दिया। लोक में अपने कार्य-साधन की पांच युक्तियाँ हैं। जो व्याक्ति धृत या धैर्य साथ काम मे लगा रहता है, जो दक्षता या समझदारी से काम करता है, जो देश और काल इन दोनों को पहचानकर अपने आपको तदनुसार ढालता है और जो कार्य-सिद्धि के लिए पराक्रम करता है, ऐसा व्यक्ति अपने उद्देश्य में सफल होता है। कुबेर ने चलते हुए तीन बातें और कहीं। प्रथम यह कि अलका-निवासी समस्त मेरे अनुचर और पर्वतीय लोग तुम्हारी रक्षा करेंगे। दूसरे इस प्रदेश में भीमसेन को साहस के कामों से बचना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वह पहाड़ में रहते हुए वहाँ लोगों से धोखा खा जाय। तीसरे, उसने यह भी कहा कि शीघ्र ही उनकी अर्जुन से भेंट होगी। सबने कुबेर को प्रणाम किया और वे अपने आश्रम को लौट आए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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