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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 159
यहाँ कथाकार ने कई अवान्तर कथाओं का पैबन्द लगाकर इस प्रसंग को और अधिक अलंकृत किया है। जटासुर-वध पर्व, यक्ष-युद्ध पर्व और निवात-कवच युद्ध पर्व इन तीन उपकरणों से यह प्रकरण लम्बा खींचा गया है। जटासुर नाम के राक्षस ने भीम को अनुपस्थित जानकर पाण्डवों पर आक्रमण किया और उनके अस्त्रों के साथ वह उनको हर कर ले जाने लगा। सहदेव ने किसी तरह अपने आपको छुड़ाकर भीमसेन को पुकारा। भीमसेन ने तत्काल आकर उस असुर का वध कर दिया। यक्ष-युद्ध पर्व की कथा संक्षेप में इस प्रकार है: नारायण-आश्रम में रहते हुए पाण्डवों को चार वर्ष बीत चुके थे। तब युधिष्ठिर ने कहा कि चलते समय अर्जुन ने मुझसे कहा था कि पाँच वर्ष समाप्त होने पर मैं श्वेत पर्वत पर आऊँगा। अर्जुन से मिलने की आशा से सब लोग नारायण-आश्रम से आगे मैनाक, गन्धमादन और श्वेत पर्वत की ओर चले वहाँ पहले वे वृषपर्वा के आश्रम में पहुँचे और फिर आर्ष्टिषेण ऋषि के आश्रम में रहे। पाँचवां वर्ष उन्होंने वहीं व्यतीत किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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