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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 157
इसके बाद कथा है कि हनुमान ने भीम को सौगन्धिक वन तक पहुँचने का मार्ग बताया और सहेज दिया, ‘‘उस वन की रखवाली राक्षस लोग करते हैं। तुम युक्ति से वहाँ अपना कार्य करना।’’ बात यह थी जब पाण्डव बदरीनाथ के पास नर-नारायण आश्रम में ठहरे थे, तब पूर्व-उत्तर की वायु के साथ एक सौगन्धिक कमल द्रौपदी के सामने आकर गिरा। उसकी दिव्य गन्ध से मुदित होकर द्रौपदी ने भीमसेन से वैसे ही और सुगन्धित पुष्प लाने को कहा। उसी की खोज में भीम की यह यात्रा हुई थी। विशालाबदरी से और आगे बढ़ने पर भीमसेन इस सौगन्धिक वन में पहुँचे। बदरीनाथ के उत्तर-पूर्व की ओर से आने वाली विष्णु-गंगा ही वह विपुल नदी होनी चाहिए, जिसके समीप यह सौगन्धिक वन था। वहीं से उत्तर-पूर्वी वायु के साथ उड़ता हुआ वह पुष्प आया था। भीमसेन ने सौगन्धिक वन में पहुँचकर वहाँ की पुष्करिणी से कमल के पुष्प लेने चाहे। रक्षकों ने उसे रोका और कहा, ‘‘यह कुबेर विहार-स्थल है। बिना उसकी आज्ञा से कोई यहाँ से कमल नहीं ले सकता।’’ भीम ने कहा, ‘‘प्रथम तो कुबेर यहाँ पास में दिखाई नहीं देते, जो उनसे आज्ञा ले ली जाय। दूसरे, यदि वह यहाँ हो भी तो मैं उनसे याचना नहीं करूँगा, क्योंकि राजा किसी से नहीं माँगते, यह सनातन धर्म है। और फिर यह नलिनी पहाड़ी झरने से स्वयं बने हुए सरोवर में उत्पन्न हुई है, कुछ कुबेर के महल के भीतर नहीं। अतएव इस पर सबका समान अधिकार है। इस तरह की सामान्य वस्तुएं भी क्या कोई किसी से मांंगा करता है?’’ इतना कह भीससेन फूल लेने के लिए बढ़े। इस पर रक्षकों में और उनमें युद्ध होने लगा। भीम के गदाप्रहार से आहत यक्षों ने कुबेर को सूचित किया। उसे जानकर कुबेर ने हंसकर कहा, ‘‘अरे, भीष्म को इच्छानुसार पुष्प लने दो। मैं जानता हूँ कि वह द्रौपदी के लिए सौगन्धिक पुष्प लेने यहाँ आये हैं।’’ इससे रक्षकों का क्रोध शान्त हो गया। इधर उसी समय पहाड़ी ढोकों को अपने साथ खींच लाने वाली बड़ी प्रचंड वायु चलने लगी। आकाश से घोर ध्वनि के साथ गाज गिरी और अन्धेरा छा गया। युधिष्ठिर ने द्रौपदी से पूछा, ‘‘भीम कहाँ हैं, द्रौपदी से यह जानकर कि भीम उत्तर-पूर्व की दिशा में कमल लेने गए हैं, युधिष्ठिर चिन्तित होकर द्रौपदी और भाइयों के साथ उसी दिशा में चले। पुष्करिणी के समीप पहुँचकर उन्होंने भीम को तीर पर बैठे हुए देखा और वह अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा उस दिन वहीं ठहरकर सबके साथ नर-नारायण आश्रम लौट आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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