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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 39
उसी समय महायोगी व्यास वहाँ आ गए और बोले, “हे युधिष्ठिर, मैंने तुम्हारे मन की बात जान ली, और तुम्हें समझाने के लिए शीघ्र यहाँ आ गया। भीष्म, द्रोण, कृप और कर्ण के कारण उत्पन्न तुम्हारा भय मैं दूर करूंगा।” इतना कह व्यास जी ने युधिष्ठिर को एकान्त में ले जाकर ‘प्रतिस्मृति’ नाम की विद्या दी और कहा, “इसे लेकर अर्जुन इन्द्र, रुद्र, वरुण, कुबेर और यम के पास जाकर अस्त्र प्राप्त करें। अर्जुन ऋषि है। वह विष्णु का सनातन अंश है। नारायण की सहायता से वह सब कार्य सिद्ध करेगा और तुम भी अब यहाँ से दूसरे वन में चले जाओ।” व्यास की बात सुनकर युधिष्ठिर द्वैत वन से सरस्वती नदी के किनारे काम्यक वन के दूसरे भाग में चले गए। वहाँ उन्होंने अर्जुन से एकान्त में कहा, “हे तात, कृष्ण द्वैपायन से मुझे यह मंत्र मिला है, तुम इसे लेकर उन-उन देवताओं के पास जाओ और अस्त्रों को प्राप्त करो। पहले इन्द्र के पास जाना, वह तुम्हें अस्त्र प्रदान करेगा।” अर्जुन को इन्द्र के दर्शन बड़े भाई की बात मानकर अर्जुन ने उसी समय दीक्षा ली और अब भाइयों और धौम्य की प्रदक्षिणा कर वह इन्द्र के पास चले। वह पहले हिमालय पर पहुँचे और उसके एक देश गन्धमादन पर्वत[1] से आगे बढ़कर इन्द्रकील चोटी पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने वृक्ष के नीचे खड़े हुए एक तपस्वी को देखा। उसने पूछा, “तुम कौन हो? यहाँ क्यों आये हो? यहाँ शस्त्र का क्या काम? यह धनुष फेंक दो। यह शान्त आश्रम है।” ब्राह्मण ने बार-बार ऐसा कहा, किन्तु अर्जुन अपने दृढ़ निश्चय से न डिगा। तब उस ब्राह्मण से प्रसन्न होकर कहा, “मैं ही इन्द्र हूँ। तुमसे प्रसन्न हुआ। मुझसे वर मांगो।” अर्जुन ने कहा, “भगवन, यदि आप प्रसन्न है तो मुझे अस्त्र-विद्या का ज्ञान कराइये।” इन्द्र ने अर्जुन को उस व्रत से हटाना चाहा, किन्तु उसका निश्चय देखकर कहा, “तुम पहले त्रिशूलधारी भूतेश भगवान शिव का दर्शन करो, तब तुम्हें दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति होगी।” यह कहकर इन्द्र चले गए और अर्जुन वहीं योग-साधना करते हुए रहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बदरीनाथ के पास हिमालय की चोटी जो, अभी तक इसी नाम से प्रख्यात है
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