विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 7-13
अर्जुन ने कृष्ण को इस प्रकार विचलित देखकर उन्हें शान्त करना चाहा और वह उनके पराक्रमों का बखान करने लगा। कृष्ण के पराक्रमों की सूची यहां[1] और दो बार उद्योग पर्व में आई है। वहाँ एक बार तो विदुर ने ही दुर्योधन से[2] और दूसरी बार संजय ने अर्जुन के शब्दों को उद्धृत करते हुए उसका उल्लेख किया है।[3] अर्जुन के कहे हुए दोनों वर्णन पंचरात्र भागवतों के प्रभाव के अन्तर्गत निर्मित हुए। इनमें नर-नारायण का एक साथ उल्लेख है और स्पष्ट रूप से कृष्ण को विष्णु का अवतार और विराट पुरुष कहा गया है। इन तीनों सूचियों को मिलाकर देखने से कृष्ण के जीवन की लीलाएं कुछ इस प्रकार सामने आती हैंः बचपन में उन्होंने पूतना का वध किया, गौओं की रक्षा के लिए गोवर्धन धारण किया और अरिष्ट, धेनुक, अश्वराज केशी, महाबल चाणूर और कंस का वध किया। बड़े होने पर उन्होंने जरासन्ध, दंतवक, शिशुपाल, बाणासुर- जैसे बली राजाओं को मारा। इसी प्रकार प्राग्ज्योतिष-दुर्ग में भौम नरकासुर का नाश किया और निर्मोचन में मुर का वध किया। एक ओर गन्धार देश में राजा नग्नजित के पुत्रों को मथ डाला, दूसरी ओर दक्षिण दिशा में पांड्यकवाट नगर के अधिपति पांड्य राजा को एंव कलिंग की राजधानी दन्तकूर में वहाँ के राजा को मर्दित किया। निषादराज एकलव्य का वध किया एवं शाल्यराज से युद्ध करके उसकी शतघ्नी छीन ली। जारूथी नगरी में आहुति को मारा तथा क्राथ, भीमसेन, शैव्य, शतधन्वा, इन्द्रद्युम्न और कशेरुमान यवन का वध किया। दूसरे पराक्रमों में भोज्या रुक्मिणी का अपहरण किया, स्वर्ग से पारिजात-हरण करके इन्द्र को जीता[4] और विनाथा वाराणसी का वर्षों तक दहन किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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