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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 7-11
नारद ने इतना और कहा, "यम, वरुण, इन्द्र, कुबेर और ब्रह्मा इन पांचों की दिव्य सभाओं का परिचय मुझे है। यदि तुम चाहो तो मैं कहूँ कि वे किस द्रव्य की बनी हुई हैं, विस्तार और आयाम में कितनी लम्बी-चौड़ी है और उनके सभासद कौन-कौन हैं।" युधिष्ठिर के इच्छा प्रकट करने पर नारद ने इन पांचों सभाओं का विस्तार से वर्णन किया। ये वर्णन भारत के धार्मिक इतिहास की दृष्टि से कुछ महत्त्व रखते हैं। इनका सार यह है कि यम की सभा में अनेक राजा लोग, वरुण की सभा में नाग और असुर, नदी और समुद्र, कुबेर की सभा में यक्ष, राक्षस, गंधर्व, अप्सराएं और भगवान शंकर, ब्रह्मा की सभा में महर्षि और सब शास्त्र, एवं इन्द्र की सभा में देवता और महर्षि सदस्यों के रूप में विराजमान रहते थे। राजाओं में केवल हरिश्चन्द्र ऐसे हैं, जो इन्द्र की सभा के स्थायी सदस्य हैं। युधिष्ठिर द्वारा इसका कारण पूछने पर नारद ने कहा, “हरिश्चन्द्र सब राजाओं में सम्राट थे। उन्होंने जैत्र रथ में बैठकर शस्त्र के प्रताप से सातों द्वीपों को जीतकर राजसूय नामक महाक्रतु का अनुष्ठान किया, जिसके लिए सब राजाओं ने लाकर उन्हें धन दिया। उस यज्ञ के प्रताप से हरिश्चन्द्र उन सब राजाओं से अधिक तेजस्वी हुए और उस महायज्ञ की समाप्ति पर अभिषिक्त होकर साम्राज्य के साथ सुशोभित हुए। अतएव हे युधिष्ठिर! तुम भी संकल्प करो कि हरिश्चन्द्र की भाँति राजसूय महायज्ञ का अनुष्ठान करोगे। अपने वशवर्ती भाइयों की सहायता से तुम सारी पृथ्वी को जीत सकते हो।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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