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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 42
धर्म! उन स्थानों में आप क्षीण नहीं होंगे। इनसे भिन्न स्थानों में आपकी कृशता देखी जायेगी। जो स्थान आपके लिये अगम्य हैं; उनका वर्णन सुनिये। सम्पूर्ण व्यभिचारिणियों में, नरघाती मनुष्यों के घरों में, नरहत्या करने वाले नीच पुरुषों में, मूर्ख और दुष्टों में, देवता, गुरु, ब्राह्मण, इष्टदेव तथा पालनीय मनुष्यों के धन का अपहरण करने वालों में; दुष्टों, धूर्तों और चोरों में, रति-स्थानों में; जूआ, मदिरापान और कलह के स्थानों में; शालग्राम, साधु, तीर्थ और पुराणों से रहित स्थलों में; डाकुओं के स्नेह में, वाद-विवाद में, ताड़की छाया में, गर्वीले मनुष्यों में, तलवार से जीविका चलाने वाले तथा स्याही से जीवन-निर्वाह करने वाले, देवालयों में पूजा की वृत्ति से जीने वाले तथा ग्राम-पुरोहितों में; बैल जोतने वालों, सुनारों और जीव-हिंसा से जीविका चलाने वालों में; भर्तृनिन्दित नारियों तथा नारी के वश में रहने वाले पुरुषों में; दीक्षा, संध्या तथा विष्णु भक्ति से हीन द्विजों में; अपनी पुत्री तथा पत्नी बेचने वालों में; शालग्राम और देवमूर्तियों का विक्रय करने वालों में; मित्रद्रोही, कृतघ्न, सत्यनाशक तथा विश्वासघातियों में; शरणागत की रक्षा से दूर रहने वालों तथा शरण में आये हुए लोगों का नाश करने वालों में; सदा झूठ बोलने वाले, सीमा का अपहरण करने वाले, काम, क्रोध और लोभवश झूठी गवाही देने वाले, पुण्यकर्महीन तथा पुण्यकर्म के विरोधी मनुष्यों में आप नहीं रहेंगे। प्रभो! इन निन्दनीय स्थानों में रहने का आपको अधिकार नहीं होगा। ऐसी व्यवस्था होने से मेरी बात भी सच्ची हो जायेगी। तात! अब मैं पति सेवा के लिये जाऊँगी। आप भी अपने घर को पधारिये। ऐसी बातें कहने वाली पद्मा के वचन सुनकर ब्रह्मपुत्र श्रीमान धर्म का मुखारविन्द प्रसन्नता से खिल उठा। वे उस पतिव्रता से अत्यन्त विनयपूर्वक बोले। धर्म ने कहा– मेरी रक्षा करने वाली देवि! तुम धन्य हो। पतिपरायणा हो। तुम्हारा सदा ही कल्याण हो। मैं तुम्हें वर देता हूँ; ग्रहण करो। बेटी! तुम्हारे पति युवावस्था से सम्पन्न तथा रतिकर्म में समर्थ हों। साध्वि! वे रूपवान और गुणवान हों। उनका यौवन सदा ही स्थिर रहे। वत्से! तुम भी उत्तम ऐश्वर्य से युक्त एवं स्थिरयौवना हो जाओ। तुम्हारे पति मार्कण्डेय के बाद दूसरे चिरंजीवी पुरुष हों। वे कुबेर से भी धनी और इन्द्र से भी बढ़कर ऐश्वर्यवान हों। शिव के समान विष्णु भक्त तथा कपिल के बाद उन्हीं की श्रेणी के सिद्ध हों। तुम जीवन भर पति के सौभाग्य से सम्पन्न बनी रहो। साध्वि! तुम्हारे घर कुबेर के भवन से भी अधिक सुन्दर हों। तुम अपने पति से भी अधिक गुणवान और चिरंजीवी दस पुत्रों की माता बनोगी; इसमें संशय नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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