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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 13
फिर सायंकाल मथुरा में पहुँचकर कौतूहलवश नगर में घूम-घूमकर सबको दर्शन देंगे। माली, दर्जी और कुब्जा को भवबन्धन से मुक्त करेंगे। शंकर जी के धनुष को तोड़कर यज्ञ भूमिका दर्शन करेंगे। फिर कुवलयापीड़ हाथी और मल्लों का वध करने के पश्चात अपने सामने राजा कंस को देखेंगे और तत्काल उसका विध्वंस करके माता-पिता को बन्धन से छुड़ायेंगे। तदनन्तर तुम सब गोपों को समझा-बुझाकर लौटायेंगे। कंस के राज्य पर उग्रसेन का अभिषेक करेंगे। कंस के बन्धु-बान्धवों को ज्ञानोपदेश देकर उनका शोक दूर करेंगे। इसके बाद अपने भाई का अपना उपनयन-संस्कार कराकर गुरु के मुख से विद्या ग्रहण करेंगे। गुरुजी को उनका मरा हुआ पुत्र लाकर देंगे और फिर घर लौट आयेंगे। इसके बाद राजा जरासंघ के सैनिकों को चकमा देकर दुरात्मा कालयवन का वध, द्वारकापुरी का निर्माण, मुचुकुन्द का उद्धार तथा यादवोंसहित द्वारकापुरी को प्रस्थान करेंगे। वहाँ कौतूहलवश स्त्रीसमूहों के साथ विवाह करके उनके साथ क्रीड़ा-विहार करेंगे। उनका तथा उनके पुत्र-पौत्रादि का सौभाग्यवर्धन करेंगे। मणिसम्बन्धी मिथ्या कलंक का मार्जन, पाण्डवों की सहायता, भूभार-हरण, धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का लीलापूर्वक सम्पादन, पारिजात का अपहरण, इन्द्र के गर्व का गंजन, सत्यभामा के व्रत की पूर्ति, बाणासुर की भुजाओं का खण्डन, शिव के सैनिकों का मर्दन, महादेव जी को जृम्भणास्त्र से बाँधना, बाणपुत्री उषा का अपहरण, अनिरुद्ध को बाणासुर के बन्धन से छुटकारा दिलाना, वाराणसीपुरी का दहन, ब्राह्मण की दरिद्रता का दूरीकरण, एक ब्राह्मण के मरे हुए पुत्रों को लाकर उसे देना, दुष्टों का दमन आदि करना तथा तीर्थयात्रा के प्रसंग से तुम व्रजवासियों के साथ पुनः मिलना इत्यादि कार्य करके ये श्रीकृष्ण श्रीराधा के साथ फिर व्रज में आयेंगे। तदनन्तर अपने नारायण-अंश को द्वारकापुरी में भेजकर ये जगदीश्वर गोलोकनाथ यहाँ राधा के साथ समस्त आवश्यक कार्य पूर्ण करेंगे तथा व्रजवासियों एवं राधा को साथ लेकर शीघ्र ही गोलोकधाम में पधारेंगे। नारायणदेव तुम्हें साथ लेकर वैकुण्ठ पधारेंगे। नर-नारायण नामक जो दोनों ऋषि हैं, वे धर्म के घर को चले जायेंगे तथा श्वेतद्वीप निवासी विष्णु क्षीरसागर को पधारेंगे। नन्द! इस प्रकार भविष्य में होने वाली लीलाओं का वर्णन मैंने किया है। यह वेद का निश्चित मत है। अब इस समय जिस उद्देश्य से मेरा आना हुआ है, उसे बताता हूँ; सुनो। माघ शुक्ल चतुर्दशी की शुभ बेला में इन बालकों का संस्कार करो। उस दिन गुरुवार है। रेवती नक्षत्र है। चन्द्र और तारा शुद्ध हैं। मीन के चन्द्रमा हैं। उस पर लग्नेश की पूर्ण दृष्टि है। उत्तम वणिज नामक करण है और मनोहर शुभ योग है। वह दिन परम दुर्लभ है। उसमें सभी उत्कृष्ट एवं उपयोगी योगों का उदय हुआ है। अतः पण्डितों के साथ विचार करके उसी दिन प्रसन्नतापूर्वक संस्कार-कर्म का सम्पादन करो। ऐसा कह मुनीश्वर गर्ग बाहर आकर बैठ गये। नन्द और यशोदा को बड़ा हर्ष हुआ और वे संस्कार-कर्म के लिये तैयारी करने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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