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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 13
इसी समय गर्ग जी को देखने के लिये गोप-गोपियाँ और बालक-बालिकाएँ नन्दभवन में आयीं। उन्होंने देखा– मुनिश्रेष्ठ गर्ग मध्याह्नकाल के सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहे हैं। शिष्य समूहों से घिरकर ब्रह्मतेज से उद्भासित हो रहे हैं और प्रश्न पूछने वाले किसी सिद्धपुरुष को वे प्रसन्नतापूर्वक गूढ़योग का रहस्य समझा रहे हैं। नन्दभवन की एक-एक सामग्री को मुस्कराते हुए देख रहे हैं और योगमुद्रा धारण किये स्वर्णसिंहासन पर बैठे हैं। ज्ञानमयी दृष्टि से भूत, वर्तमान और भविष्य को भी देख रहे हैं। वे मन्त्र के प्रभाव से अपने हृदय में परमात्मा के जिस सिद्ध स्वरूप को देखते हैं, उसी को मुस्कराते हुए शिशु के रूप में बाहर यशोदा की गोद में देख रहे हैं। महेश्वर के बताये हुए ध्यान के अनुसार जिस रूप का उन्हें साक्षात्कार हुआ था, उसी पूर्णकाम परमात्मस्वरूप का अत्यन्त प्रीतिपूर्वक दर्शन करके नेत्रों से आँसू बहाते हुए वे पुलकित शरीर से भक्ति के सागर में निमग्न दिखायी देते थे। योगचर्या के अनुसार मन-ही-मन भगवान की पूजा और प्रणाम करते थे। गोप-गोपियों ने मस्तक झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और गर्ग जी ने भी उन सबको आशीर्वाद दिया। तदनन्तर मुनि अपने आसन पर विराजमान हुए और वे समागत स्त्री-पुरुष अपने-अपने घर को गये। नन्द ने आनन्दित होकर निकटवर्ती तथा दूरवर्ती बन्धुजनों के पास शीघ्र ही मंगल पत्रिका पठायी। इसके बाद उन्होंने दूध, दही, घी, गुड़, तेल, मधु, माखन, तक्र और चीनी के शर्बत से भरी हुई बहुत-सी नहरें लीलापूर्वक तैयार करायीं। इसके बाद उन्होंने अगहनी के चावलों के सौ ऊँचे-ऊँचे पर्वताकार ढेर लगवाये। चिउरों के सौ पर्वत, नमक के सात, शर्करा के भी सात, लड्डुओं के सात तथा पके फलों के सोलह पर्वत खड़े कराये। जौ, गेहूँ के आटे के पके हुए लड्डुक, पिण्ड, मोदक तथा स्वस्तिक (मिष्टान्न-विशेष)– के अनेक पर्वत खड़े किये गये थे। कपर्दकों के बहुत ही ऊँचे-ऊँचे सात पर्वत खड़े दिखायी देते थे। कर्पूर आदि से युक्त ताम्बूल के बीड़ों से घर भरा हुआ था। सुवासित जल के चौड़े-चौड़े कुण्ड भरे गये थे, जिनमें चन्दन, अगुरु और केसर मिलाये गये थे। नन्द जी ने कौतूहलवश नाना प्रकार के रत्न, भाँति-भाँति के सुवर्ण, रमणीय मोती-मूँगे, अनेक प्रकार के मनोहर वस्त्र और आभूषण भी पुत्र के अन्न-प्राशन-संस्कार के लिये संचित किये थे। आँगन को झाड़-बुहारकर सुन्दर बनाया गया। उसमें चन्दन मिश्रित जल का छिड़काव किया गया। केले के खंभों, आम के नये पल्लवों की बन्दनवारों और महीन वस्त्रों से उस आँगन को कौतुकपूर्वक सब ओर से घेर दिया गया। यथास्थान मंगल-कलश स्थापित किये गये। उन्हें फलों और पल्लवों से सजाया गया तथा चन्दन, अगुरु, कस्तूरी एवं फूलों के गजरों से सुशोभित किया गया। सुन्दर पुष्पहारों और मनोहर वस्त्रों की राशियों से नन्द-भवन के आँगन को सजाया गया था। उसमें गौओं, मधुपर्कों, आसनों, फलों और सजल कलशों के समूह यथास्थान रखे गये थे। वहाँ नाना प्रकार के अत्यन्त दुर्लभ और मनोहर वाद्य बज रहे थे। ढक्का, दुन्दुभि, पटह, मृदंग, मुरज, आनकसमूह, वंशी, ढोल और झाँझ आदि के शब्द हो रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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