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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
1. गीता के प्रत्येक अध्याय का तात्पर्य
बारहवाँ अध्यायभक्त भगवान् का अत्यंत प्यारा होता है; क्योंकि वह शरीर-इंद्रियाँ-मन-बुद्धि सहित अपने आपको भगवान् के अर्पण कर देता है। जो परम श्रद्धापूर्वक अपने मन को भगवान् में लगाते हैं, वे भक्त सर्वश्रेष्ठ हैं। भगवान् के परायण हुए जो भक्त संपूर्ण कर्मों को भगवान् के अर्पण करके अनन्य भाव से भगवान् की उपासना करते हैं, भगवान् स्वयं उनका संसार सागर से शीघ्र उद्धार करने वाले बन जाते हैं। जो अपने मन बुद्धि को भगवान् में लगा देता है, वह भगवान् में ही निवास करता है। जिनका प्राणिमात्र के साथ मित्रता एवं करुणा का बर्ताव है, जो अहंता ममता से रहित हैं, जिनसे कोई भी प्राणी उद्विग्न नहीं होता तथा जो स्वयं किसी प्राणी से उद्विग्न नहीं होते, जो नये कर्मों के आरंभों के त्यागी हैं, जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों के आने पर हर्षित एवं उद्विग्न नहीं होते, जो मान-अपमान आदि में सम रहते हैं, जो जिस-किसी भी परिस्थिति में निरंतर संतुष्ट रहते हैं, वे भक्त भगवान् को प्यारे हैं। अगर मनुष्य भगवान् के ही होकर रहें, भगवान् में ही अपनापन रखें, तो सभी भगवान् के प्यारे बन सकते हैं। |
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