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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
69. गीता में सगुणोपासना के नौ प्रकार
गीता में सगुण उपासना का नौ प्रकार से वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है- 1. सबके आदि में भगवान् हैं- जो मनुष्य मेरे को अजन्मा, अनादि (सबका आदि) और संपूर्ण लोकों का महान् ईश्वर मानता है, वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है [1] मैं संपूर्ण जगत् का प्रभव (निमित्त कारण) तथा प्रलय (उपादान कारण) हूँ अर्थात् सबका आदि कारण हूँ[2] दैवी प्रकृति के आश्रित महात्मालोग मुझे संपूर्ण प्राणियों का आदि और अविनाशी जानकर अनन्यमन से मेरा भजन करते हैं, [3] आदि-आदि। 2. सबमें भगवान् हैं- जो सबमें मेरे को देखता है, उसके लिए मैं कभी अदृश्य नहीं होता[4]; जो संपूर्ण प्राणियों में मेरे को स्थित देखता है[5]; मैं अव्यक्त रूप से संपूर्ण जगत् में व्याप्त हूँ[6]; प्राणियों के अंतःकरण में आत्मारूप से मैं ही स्थित हूँ[7]; वह परमात्मा सबके हृदय में स्थित है[8]; मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अंतर्यामीरूप से स्थित हूँ[9]; ईश्वर संपूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित है[10]; आदि-आदि। 3. सब भगवान् में है- जो सबको मेरे में देखता है, वह मेरे लिए कभी अदृश्य नहीं होता[11]; यह संपूर्ण संसार सूत (धागे) में सूत की मणियों की तरह मेरे में ही ओतप्रोत है[12]; जिसके अंतर्गत संपूर्ण प्राणी हैं [13]; सब प्राणी मेरे में ही स्थित हैं[14]; हे अर्जुन! तू मेरे इस शरीर के एक देश में चर-अचरसहित संपूर्ण जगत् को कभी देख ले[15]; अर्जुन ने देवों के देव भगवान् के शरीर में एक जगह स्थित प्रकार के विभागों में विभक्त सम्पूर्ण जगत् को देखा[16], हे देव! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवताओं को, प्राणियों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा को, शकर जी को, ऋषियों को और दिव्य सर्पो को देखता हूँ,[17] आदि-आदि। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (10।3)
- ↑ (7।6)
- ↑ (9।13)
- ↑ (6।30)
- ↑ (6।31)
- ↑ (9।4)
- ↑ (10।20)
- ↑ (13।17)
- ↑ (15।15)
- ↑ (18।61)
- ↑ (6।30)
- ↑ (7।7)
- ↑ (8।22)
- ↑ (9।6)
- ↑ (11।7)
- ↑ (11।13)
- ↑ (11।15)
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