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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
62. गीता में अष्टांगयोग का वर्णन
पातंजल योगदर्शन में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि- इन आठ अंगों वाले ‘अष्टांगयोग’ का वर्णन आया है- ‘यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यान समाधयोऽष्टावंगानि’[1] गीता में भगवान् ने इस अष्टांयोग का क्रमपूर्वक वर्णन तो नहीं किया है, पर भगवान् की वाणी इतनी विलक्षण है कि इसमें अन्य योग साधनों के साथ अष्टांयोग का भी वर्णन आ गया है; जैसे- 1. यम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह- ये पाँच ‘यम’ कहलाते हैं- ‘अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः’।[2] गीता में ‘अहिंसा’ का[3] पद से ‘अहिंसा’ का; ‘सत्यम्’[4]पद से ‘सत्य’ का; ‘स्तेन एव सः’[5] पदों में विधिमुख से ‘अस्तेय’ का; ‘ब्रह्मचारिव्रते स्थितः’[6]; ‘ब्रह्मचर्य चरन्ति’[7]; ‘ब्रह्मचर्यम्’[8] पदों से ‘ब्रह्मचर्य’ का और ‘त्यक्तसर्वपरिग्रहः’[9], ‘अपरिग्रहः’,[10] ‘अहंकारं... परिग्रहम्। विमुच्य....’[11] पदों से ‘अपरिग्रह’ का वर्णन हुआ है। 2. नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्राणिधान- ये पाँच ‘नियम’ कहलाते हैं- शौचसंतोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः[12] गीता में ‘शौचम्’[13] पद से शौच का; ‘यदृच्छालाभसंतुष्टः’[14] ‘आत्मन्येव च संतुष्टः’, [15] ‘तुष्यन्ति’,[16] ‘संतुष्ट’,[17] ‘संतुष्टो येन केनचित्’[18] पदों से ‘संतोष’ का; यत्तपस्यसि (9।27), ‘तपः’[19] पदों से ‘तपः’ का; ‘स्वाध्यायज्ञान-यज्ञाश्च’,[20] ‘स्वाध्यायाभ्यसनम्’,[21] ‘अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः’[22] पदों से ‘स्वाध्याय’ का; ‘मामाश्रित्योः’,[23] ‘तमेव शरणं गच्छ’,[24] ‘मामेकं शरणं व्रज’[25] पदों से ‘ईश्वर प्राणिधान’ का वर्णन हुआ है। 3. आसन- स्थिर और सुखपूर्वक बैठने का नाम ‘आसन’ है- ‘स्थिरसुखमासनम्’[26] गीता में ‘समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः। साम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्’[27]- इस श्लोक में ‘आसन’ का वर्णन हुआ है। 4. प्राणायाम- श्वास-प्रश्वास की गति को रोकना ‘प्राणायाम’ कहलाता है- ‘तस्निमन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः’[28] गीता में ‘प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः’,[29] 'प्राणापानौ समौ कृत्वा'[30], ‘भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्’,[31] ‘मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणम्’[32] पदों से ‘प्राणायाम’ का वर्णन हुआ है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (2।29)
- ↑ (पातंजल 2।30)
- ↑ (10।5, 13।7, 16।2, 17।14)
- ↑ (16।2, 17।15)
- ↑ (3।12)
- ↑ (6।14)
- ↑ (8।11)
- ↑ (17।14)
- ↑ (4।21)
- ↑ (6।10)
- ↑ (18।53)
- ↑ (पातंजल 2।32)
- ↑ (13।7, 16।3,17।14, 18।42)
- ↑ (4।22)
- ↑ (3।17)
- ↑ (10।9)
- ↑ (12।14)
- ↑ (12।19)
- ↑ (16।1, 17।14-16)
- ↑ (4।28)
- ↑ (17।15)
- ↑ (18।70)
- ↑ (7।29)
- ↑ (18।62)
- ↑ (18।66)
- ↑ (पातंजल 2।46)
- ↑ (6।13)
- ↑ (पातंजल 2।49)
- ↑ (4।29)
- ↑ (5।27)
- ↑ (8।10)
- ↑ (8।12)
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