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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
106. गीता के छन्द
छन्दों के संबंध में कुछ ज्ञातव्य बातेंवर्णोच्चारण मात्र के दो भेद होते हैं- 1. लघु और (ऽ) जितने भी ग्रंथ होते हैं, वे गद्यात्मक, पद्यात्मक अथवा उभयात्मक (गद्य-पद्य-मिश्रित) होते हैं। पद्य का नाम ‘छन्द’ है। प्रत्येक छन्द के प्रायः चार चरण (पाद) होते हैं। छन्द के तीन प्रकार हैं- गणछन्द (जैसे उपेंद्रवज्रा आदि), अक्षरछंद (जैसे पथ्यावक्त्र आदि) और मात्राछन्द (जैसे आर्या आदि)। इनमें से मात्राछन्द गीता में नहीं है; अतः यहाँ उस पर विचार नहीं किया जा रहा है। गणछन्द एक अक्षर से छब्बीस अक्षरों तक के होते हैं, जिनके अलग-अलग छब्बीस नाम हैं। तीन अक्षरों के समूह को ‘गण’ कहते हैं। आदि, मध्य और अंत के अक्षरों के गुरु- लघु के विचार से गणों के आठ भेद होते हैं। उनके नाम और लक्षण इस प्रकार हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (पिंगलछन्दः सूत्रम् 1।9)
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