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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
98. गीतोक्त श्लोकों के अनुष्ठान की विधि
श्री मद्भगवतगीता के जिस श्लोक को सिद्ध करना हो, उसका सम्पुट लगाकर पूरी गीता का पाठ करना चाहिये। जैसे, हमें 'कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:.....शाधि मां त्वां प्रपत्रम्'[1] - इस श्लोक को सिद्ध करना हो तो पहले इस श्लोक का एक बार पाठ करके फिर 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे....'[2] - इस श्लोक का पाठ करे। फिर 'कार्पण्यदोषोपहतस्वभाव:....' श्लोक का पुन: पाठ करके 'दृष्टा तु....' [3] - इस श्लोक का पाठ करें। इस तरह प्रत्येक श्लोक के पहले और पीछे सम्पुट लगाकर पूरी गीता का पाठ करें तो उपर्युक्त श्लोक (मंत्र) सिद्ध हो जायेगा। सम्पुट से भी सम्पुटवल्ली लगाकर गीता का पाठ बहुत बढ़िया है[4] जैसे, 'कार्पण्य-दोषोपहतस्वभाव:..... 'श्लोक सिद्ध करना हो तो पहले इस श्लोक का दो बार पाठ करके फिर 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे.....' श्लोक का पाठ करें। फिर सम्पुटवल्ली वाले श्लोक का दो बार पाठ करके 'दृष्ट्वा तु...' श्लोक का पाठ करें। इस तरह पूरी गीता का पाठ करके अभीष्ट श्लोक को सिद्ध कर लें।[5] अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिए उपर्युक्त प्रकार से सिद्ध किए हुए मंत्र का जप गंगा जी के जल में खड़े होकर करना चाहिए। ऐसा न कर सकें तो गंगाजी के जल में पत्थरों का आसन बनाकर उस पर उनका आसन बिछाकर, बैठकर जप करना चाहिए। यह भी न कर सके तो गंगाजी के किनारे पर बालू में अपना ऊनी आसन बिछाकर मंत्र का जप करन चाहिए। अगर गंगाजी का सान्निध्य उपलब्ध न हो तो अपने घर में किसी एकान्त कमरे में गोबर और गोमूत्र को पानी में मिलाकर आसन लगाने के स्थान पर लीप दें और उस पर अपना ऊनी आसन बिछाकर, बैठकर मंत्र का जप करें। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (2।7)
- ↑ (1।1)
- ↑ (1।2)
- ↑ सिद्ध किये जाने वाले श्लोक का गीता के प्रत्येक श्लोक से पहले और पीछे एक बार पाठ करना 'सम्पूट पाठ' और दो बार पाठ करना 'सम्पुटवल्ली पाठ' कहलाता है।
- ↑ मंत्र को किसी कारण से सिद्ध न कर सके और अभीष्ट कर्य सिद्ध करने की तीवृ उत्कण्ठा हो तो बिना सिद्ध किये गये मंत्र का जप करने से भी कार्य सिद्ध हो सकता है।
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