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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
108. गीता का परिणाम और पूर्ण शरणागति
महर्षि श्रीवेदव्यास रचित महाभारत में ऋषिवर वैशम्पायन जी ने गीता के परिणाम में कुल सात सौ पैंतालीस श्लोक बताये हैं।
‘गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने छः सौ बीस श्लोक कहे हैं, अर्जुन ने सत्तावन श्लोक कहे हैं, संजय ने सड़सठ श्लोक कहे हैं और धृतराष्ट्र ने एक श्लोक कहा है। यह गीता का परिमाण कहा जाता है।[2] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (भीष्म. 43।4-5)
- ↑ ’महाभारत (आदिपर्व 1।74-83) में आता है कि ब्रह्मा जी के कहने से महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी से महाभारत ग्रंथ का लेखक बनने की प्रार्थना की। इस पर गणेशजी ने एक शर्त रखी कि यदि लिखते समय क्षणभर के लिए भी मेरी लेखनी न रुके तो मैं इस ग्रंथ का लेखक बन सकता हूँ। वेदव्यासजी भी गणेशजी के सामने यह शर्त रखी कि आप भी बिना समझे किसी भी प्रसंग में एक अक्षर भी न लिखें। गणेशजी ने इसे स्वीकार कर लिया और महाभारत लिखने बैठ गये। लिखवाते समय बीच-बीच में वेदव्यासजी ऐसे-ऐसे (गूढ़ अर्थवाले) कूट श्लोक बोल देते थे, जिन्हें समझने के लिए गणेशजी को थोड़ा रुकना पड़ता था। इतने समय में वेदव्यासजी और बहुत से श्लोकों की रचना कर लेते थे। गीता-परिमाण-संबंधी श्लोक भी ऐसे ही कूट श्लोक प्रतीत होते हैं। इसलिए कोई-कोई टीकाकार गीता-परिमाण की संगति बैठाने में असमर्थ होकर इन श्लोकों को प्रक्षिप्त (क्षेपक) मान लेते हैं। परंतु वास्तव में ये महाभारत के ही श्लोक प्रतीत होते हैं; क्योंकि एक तो ये महाभारत की पुरानी से पुरानी प्रतियों में पाये जाते हैं और दूसरे, गीता का गहराई से विचार करने पर इन श्लोकों के अनुसार गीता-परिमाण की संगति ठीक-ठीक बैठ जाती है। महाभारत की जिन प्रतियों में हमें गीता परिमाण संबंधी उपर्युक्त श्लोक मिलते हैं, उनका परिचय इस प्रकार है-
1. गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित, पाण्डेय श्रीरामनारायणदत्त शास्त्रीकृत हिंदी-टीका, पृ. 2813
2. सनातनधर्म प्रेस, मुरादाबाद से प्रकाशित- श्रीरामस्वरूपकृत हिंदी-टीका, पृ. 184।
3. महाभारत प्रकाशक मंडल, मालीवाड़ा, दिल्ली से प्रकाशित – श्रीगंगा प्रसाद शास्त्रीकृत हिंदी टीका पृ 387
4. स्वाध्याय मंडल द्वारा प्रकाशित श्रीपाद दामोदर सातवलेकरकृत हिंदी टीका, पृ. 221
5. श्रीद्वारका प्रसाद शर्मा द्वारा किया महाभारत का हिंदी अनुवादमात्र, पृ. 146
6. महाभारत की नीलकण्ठी टीका- मूल में गीता परिमाण संबंधी श्लोक दिये हैं; किंतु उनकी टीका न करके ‘गीता सुगीता कर्तव्या इत्यादयः सार्धाः पञ्च श्लोकाः गोडैर्न पठ्यन्ते’ ऐसा लिखा है।
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