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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
70. गीता का गोपनीय विषय
भगवान के द्वारा आत्मीय भक्त अर्जुन के सामने अपने-आपको प्रकट करना ही गीता का मुख्य गोपनीय विषय है। भगवान अवतार लेकर अपने-आपको छिपाते है, सबके सामने अपनी भगवत्ता प्रकट नहीं करते[1], परंतु अंतरंग प्यारे भक्तों के सामने वे छिप ही नहीं सकते, अपने-आपको प्रकट कर ही देते हैं। भगवान ने गीता में अपने प्यारे भक्त अर्जुन के सामने अपनी भगवत्ता, महत्ता प्रभुता की बहुत-सी बातें कही हैं; जैसे- इस योग (कर्मयोग) को मैंने पहले सूर्य से कहा था। फिर सूर्य ने मनु से और मनु ने इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को समस्त राजर्षियो ने काम में लिया। परंतु इसको जानने वाले न होने से बहुत काल से यह योग लुप्तप्राय हो गया है। उसी इस पुरातन योग को मैंने तेरे से कहा है, यह बड़े रहस्य की बात है। तात्पर्य है कि जिसने पहले सूर्य को उपदेश दिया, वही मैं आज तुझे उपदेश दे रहा हूँ- वह अत्यन्त गोपनीय बात है।[2] मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो गये हैं; 'उन सबको मै जानता हूँ, तू नहीं।[3] मैं अजन्मा, अव्ययात्मा और सम्पूर्ण प्राणियों का स्वामी रहता हुआ ही प्रकृति को अपने वश में करके प्रकट होता हूँ,[4] मैं ही धर्म की स्थापना, भक्तों की रक्षा और दुष्टों का विनाश करने के लिये युग-युग में अवतार लेता हूँ।[5] महासर्ग के आदिमें मैंने ही चारों वर्णों की रचना की है। रचना करने पर भी मैं अकर्ता ही रहता हूँ।[6] मेरे को सम्पूर्ण यज्ञों तथा तपों का भोक्ता, सम्पूर्ण लोकों का महान् ईश्वर और सम्पूर्ण प्राणियों का सुहद् जानकर मनुष्य शांति को प्राप्त हो जाता है।[7] जो मेरे को सबमें और सबको मरे में देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और मेरे लिये वह अदृश्य नहीं होता।[8] |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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