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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
78. गीता में संवाद
गीता में दो संवाद हैं- 1. धृतराष्ट्र और संजय का संवाद। 2. श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद। गीता के पहले अध्याय के पहले श्लोक में ही धृतराष्ट्र बोले हैं, उसके बाद अठारह अध्याय तक धृतराष्ट्र बोले ही नहीं। संजय बीच-बीच में कई बार बोले हैं। पहले अध्याय में ‘हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह’[1], ‘उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान् कुरुनिति’[2] आदि वचनों के रूप में श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद तो आया है, पर यह आया है संजय के वचनों के अंतर्गत ही। श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद दूसरे अध्याय के दूसरे श्लोक से आरंभ होता है। उपर्युक्त दोनों संवादों के अतिरिक्त दुर्योधन और प्रजापित ब्रह्मा जी के वचन भी गीत में आते हैं; जैसे- पहले अध्याय के तीसरे श्लोक से ग्यारहवं श्लोक तक (कुल नौ श्लोक में) दुर्योधन के वचन हैं; और तीसरे अध्याय के दसवें श्लोक के उत्तरार्ध से बारहवें श्लोक के पूर्वार्ध तक ब्रह्माजी के वचन हैं। इनमें से दुर्योधन के वचन तो संजय के वचनों के अंतर्गत हैं और ब्रह्माजी के वचन भगवान् के वचनों के अंतर्गत हैं। इसीलिए यहाँ ‘दुर्योधन उवाच’ और ‘प्रजापतिरुवाच’ नहीं दिया गया। दूसरी बात, संपूर्ण महाभारत वैशम्पायन और जनमेजय का संवाद है। उसके अंतर्गत गीता में धृतराष्ट्र और संजय का संवाद है,[3] जिसमें संजय श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद सुना रहे हैं, न कि दुर्योधन आदि का। प्रत्येक अध्याय के अंत में जो पुष्पिका दी गयी है, उसमें भी ‘श्रीकृष्णार्जुनसंवादे’ पद किया गया है। अतः गीता मं दो ही संवाद हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (1।21)
- ↑ (1।25)
- ↑ महाभारत के वक्ता वैशम्यापन ऋषि हैं और श्रोता राजा जनमेजय हैं। महाभारत में कुल अठारह पर्व हैं। उनमें से भीष्म पर्व के आरंभ में राजा जनमेजय वैशम्पायन जी से प्रश्न करते हैं कि कौरवों और पांडवों ने युद्ध कैसे किया? इसके उत्तर में वैशम्पायन जी ने दोनों सेनाओं के हर्षोल्लास आदि की बातें बतायीं। फिर वेदव्यास जी धृतराष्ट्र के पास आये और उन्होंने धृतराष्ट्र को अवश्यम्भावी युद्ध के विषय में बहुत सी बातें कहीं तथा संजय को दिव्यदृष्टि दी; जिससे वे धृतराष्ट्र को युद्ध आदि की सभी बातें सुनाते रहें। वेदव्यास जी के चले जाने पर धृतराष्ट्र ने संजय से कहा कि जिस भूमि के लिए मेरे और पाण्डु के पुत्र लड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं, उसका मुझे विस्तार से वर्णन सुनाइये। इस पर संजय ने भारतवर्ष की भूमिका; द्वीपों, नदियों, पहाड़ों आदि का वर्णन किया। फिर श्रीमद्भागवद् गीतापर्व के आरंभ में (जो कि भीष्मपर्व का तेरहवाँ अध्याय है) वैशम्पायन जी ने राजा जनमेजय से कहा कि एक दिन की बात है, संजय ने युद्धभूमि से लौटकर धृतराष्ट्र को भीष्म पितामह को शरशय्या पर गिरा दिए जाने का समाचार दिया। इसको लेकर धृतराष्ट्र और संजय के बीच दोनों सेनाओं की बहुत सी बातें होती रहीं। अंत में भीष्मपर्व के पचीसवें अध्याय के आरंभ में (जो कि गीता का पहला अध्याय है) धृतराष्ट्र ने युद्ध का क्रमशः विस्तारपूर्वक वर्णन सुनाने के लिए संजय से प्रश्न किया।
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