विषय सूची
गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
102. गीता में काव्यगत विशेषताएँ
(ख)काव्य में श्लोक के अन्वयों के चार भेद माने गये हैं- युग्म, विशेषक, कलाप और कुलक-
जहाँ दो श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है, उसको ‘युग्म’ कहते हैं, जहाँ तीनों श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है, उसको ‘विशेषक’ कहते हैं, जहाँ चार श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है, उसको ‘कलाप’ कहते हैं और जहाँ चार से अधिक श्लोकों का एक साथ अन्वय किया जाता है, उसको ‘कुलक’ कहते हैं। गीता में इन चारों का प्रयोग हुआ है; जैसे- पहले अध्याय के चौंतीसवें पैंतीसवें, दूसरे अध्याय के बासठवें तिरसठवें, तीसरे अध्याय के चौदहवें पंद्रहवें एवं बयालीसवें- तैंतालीसवें, पाँचवें अध्याय के आठवें नवें, आठवें अध्याय के बारहवें तेरहवें, नवें अध्याय के चौथे पाँचवें, दसवें अध्याय के चौथे-पाँचवें एवं बारहवें तेरहवें, ग्यारहवें अध्याय के इकतालीसवें-बयालीसवें, बारहवें अध्याय के अठारहवें- उन्नीसवें, चौदहवें, अध्याय के चौबीसवें पचीसवें आदि श्लोकों में ‘युग्म’ अन्वय का प्रयोग हुआ है। पहले अध्याय के चौथे से छठे श्लोक तक एवं सोलहवें से अठारहवें श्लोक तक, दूसरे अध्याय के बयालीसवें से चौवालीसवें श्लोक तक, सोलहवें अध्याय के पहले से तीसरे श्लोक तक, अठारहवें अध्याय के इक्यावनवें से तिरपनवें श्लोक तक ‘विशेषक’ अन्वय का प्रयोग हुआ है। छठे अध्याय के बीसवें से तेईसवें श्लोक तक और अठारहवें अध्याय के बयालीसवें से पैंतालीसवें श्लोक तक ‘कलाप’ अन्वय का प्रयोग हुआ है। चौथे अध्याय के चौबीसवें से तीसवें श्लोक तक और तेरहवें अध्याय के सातवें से ग्यारहवें श्लोक तक ‘कुलक’ अन्वय का प्रयोग हुआ है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज