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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
2. गीता संबंधी प्रश्नोत्तर
उत्तर- कुटुम्ब की ममता विवेक को दबा देती है, उसकी मुख्यता नहीं रहने देती और मनुष्य को मोह-ममता में तल्लीन कर देती है। अर्जुन को भी कुटुम्ब की ममता के कारण मोह हो गया।
उत्तर- कौटुम्बिक मोह के कारण अर्जुन (पहले अध्याय में) युद्ध से निवृत्त होने को धर्म और युद्ध में प्रवृत्त होने को अधर्म मानते थे अर्थात् शरीर आदि को लेकर उनकी दृष्टि केवल भौतिक थी। अतः वे युद्ध में स्वजनों को मारने में लोभ को हेतु मानते थे। परंतु आगे गीता का उपदेश सुनते-सुनते उनमें अपने कल्याण की इच्छा जाग्रत हो गयी।[3] अतः वे पूछते हैं कि मनुष्य न चाहता हुआ भी न करने योग्य काम में प्रवृत्त क्यों होता है? तात्पर्य है कि पहले अध्याय में तो अर्जुन मोहावृष्टि होकर कह रहे हैं और तीसरे अध्याय में वे साधक की दृष्टि से पूछ रहे हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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