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गीता दर्पण -स्वामी रामसुखदास
9. गीता में आहारी का वर्णन
ज्ञातव्य
उत्तर- आसन, प्राणायाम, संयम, ब्रह्मचर्यपालन आदि से कुपथ्य रोग तो होते ही नहीं और प्रारब्धजन्य रोगों में भी उतनी तेजी नहीं रहती, उनका शरीर पर कम प्रभाव होता है। कारण कि आसन, प्राणायाम आदि भी कर्म हैं अतः उनका भी फल होता है।
उत्तर- व्यायाम के ही दो भेद हैं-
जो लोग कुश्ती का व्यायाम करते हैं, उनकी मांसपेशियाँ मजबूत, कठोर हो जाती हैं और जो लोग आसनों का व्यायाम करते हैं, उनकी मांसपेशियाँ लचकदार, नरम हो जाती है। दूसरी बात, जो लोग कुश्ती का व्यायाम करते हैं, उनका शरीर जवानी में तो अच्छा रहता है, पर वृद्धावस्था में व्यायाम न करने से उनके शरीर में, संधियों में पीड़ा होने लगती है। परंतु जो लोग आसनों का व्यायाम करते हैं, उनका शरीर जवानी में तो ठीक रहता ही है, वृद्धावस्था में अगर वे आसन न करें तो भी उनके शरीर में पीड़ा नहीं होती[1] इसके सिवा आसनों का व्यायाम करने से नाड़ियों में रक्तप्रवाह अच्छी तरह से होता है, जिससे शरीर निरोग रहता है। ध्यान आदि करने से भी आसनों का व्यायाम बहुत सहायक होता है। अतः आसनों का व्यायाम करना ही उचित मालूम देता है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वृद्धावस्था में भी आसनों का सूक्ष्म (हल्का) व्यायाम करना चाहिए, इससे शरीर में स्फूर्ति, हल्कापन रहेगा।
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