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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
परिशिष्ट
महाभारत में साहित्यिक शैलियां
पहले तो यह जान लेना चाहिए कि महाभारत के वर्तमान रूप को देखते हुए उस पर पुराण के सब लक्षण घटित होते हैं। यद्यपि महाभारत को प्रारम्भिक किंवदन्ती के अनुसार अद्यावधि इतिहास ही कहा जाता है, तथापिः वंशानुचरितं च पुराणं पञ्चलक्षणम्। इस श्लोक में कहे गए पुराण के सब प्रसिद्ध लक्षण वर्तमान महाभारत पर पूर्णतया घटित होते हैं। ज्ञात होता है कि मूल इतिहास-परायण ग्रन्थ को पुराण की परिभाषा के अनुसार सुसंस्कृत और परिवर्द्धित किया गया। इसका श्रेय भारतवर्ष की विशेष दार्शनिक प्रतिभा को है जिसके कारण यहाँ सभी प्राचीन ग्रन्थों में किसी न किसी अंश तक पुराण का पुट देने का आयोजन किया गया। पुराण बन जाने के कारण ही मानो महाभारत ने प्राचीन काल के समस्त आख्यान, उपाख्यान, गाथा, नाराशंसी और अनुव्याख्यानादिक को आत्मसात् करने के लिए अपना विशाल तोरण-द्वार उन्मुक्त रूप से खोल दिया। यही कारण है कि महाभारत में वैदिक काल के प्रायः सभी प्रधान अध्यात्म, अधिदैव और अधिभूत-परक उपाख्यानों का समावेश हो गया है। उदाहरण के लिए कर्णपर्व [1] की त्रिपुरासुर कथा, द्रोणपर्व [2] का त्रिपुरवधाख्यान, वनपर्व की[3] त्रिपुरवध कथा, वनपर्व की [4] की च्यवनमुनि कथा, शल्यपर्व का[5] त्रित-उपाख्यान इसी कोटि के हैं। विशेष कर आदिपर्व का गरुड़ोपाख्यान जिसमें गरुड़ के स्वर्ग से अपनी माता विनता या सुपर्णा की मुक्ति के लिए अमृत के घट लाने का वर्णन है, एक अत्यन्त प्राचीन वैदिक उपाख्यान का नवीन प्रकार से उपबृंहण है। संहिताओं में तथा ऐतरेय और शतपथादि ब्राह्मणों में महासुपर्ण गायत्री के स्वर्ग से या द्युलोक से अमृत अथवा सोम लाने का बहुत ही तत्त्वगर्भित वर्णन पाया जाता है। ‘इतिहास-पुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्’ की आज्ञा का अनुसरण करके ही मानो महाभारत के प्रणेता ने उस कथा का अत्यन्त पल्लवित संस्करण आदिपर्व की पक्षिराज गरुड़ की कथा में हमारे सामने रखा है। यही महाभारतकार की प्रथम शैली है जिसे हम उपाख्यान शैली के विशिष्ट नाम से पुकार सकते हैं। (1) उपाख्यान शैली- इस शैली के अवलम्बन से व्यास जी ने समस्त प्राचीन उपाख्यानों का अपने ग्रन्थ में सन्निवेश करके मानव-जाति को सदा के लिए ऋणी बना दिया है। प्राचीन गाथाशास्त्र के प्रेमी सदा इसके लिए उनके कृतज्ञ रहेंगे। नारवे, आइसलैंड आदि उत्तराखण्ड-वर्ती देशों की प्राचीन गाथाओं के विद्वान आज मुक्तकण्ठ से सीमण्ड और उसके पौत्र स्नोरी की प्रतिभा का गुणगान करते हैं जिन्होंने आर्यों के वंशज ट्यूटन कहलाने वाले लोगों की प्राचीन कथाओं का संग्रह ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी के लगभग किया। सीमण्ड ने ‘पोएटिक एड्डा’ के नाम से सब उपाख्यानों को एकत्र किया, तदनन्तर उसके पौत्र स्नोरी स्टर्लेसान ने जिसका जन्म सन् 1179-1181 के बीच हुआ और जो पीछे से आइसलैंड का प्रेसीडेंट भी बन गया था, उन सब कथाओं का गद्यरूप में एक अत्यन्त उत्कृष्ट संस्करण तैयार किया। आज यही बात हम व्यास-शुक-रोमहर्षण के लिए भी कह सकते हैं जिन्होंने सीमण्ड और स्नोरी से सहस्रों वर्ष पहले आर्यों के विराट गाथा-वांङ्मय को अपने काव्य के साथ गूंथ कर उसे सदा के लिए अमर कर दिया। इसी कारण महाभारत वेद और पुराणों के उपाख्यानों का अक्षय भण्डार बना हुआ है। ‘एड्डा’ और ‘सागाओं’ के लिए प्रख्यात लेखक कारलाइल ने लिखा है कि यह इतनी महान कृतियां हैं कि उन्हें किञ्चित् स्वल्प कर देने पर शेक्सपियर, दांते, गेटे बन जायंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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