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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
12. शान्ति पर्व
अध्याय : 168-353
अध्याय 288 में हंस-साध्य संवाद के रूप में हंस गीता 45 श्लोकों में वर्णित है। सृष्टि के आरम्भ में प्रजापति ने सुनहले हंस का रूप धारण किया और सर्वत्र विचरने लगे। साध्यदेवों ने उनसे धर्म की जिज्ञासा की तो उन्होंने पहले मधुर वाणी की प्रशंसा की और फिर यह बताया कि वेदों का उपनिषद् सत्य है, सत्य का उपनिषद् दम है, और दम का उपनिषद् मोक्ष हैः वेदस्योपनिषत्सत्यं सत्यस्योपनिषद्दमः। वाक् का वेग, मन का क्रोधवेग, लोभ का वेग, उदर और उपस्थ का वेग-जो इन वेगों को सहता है, उसे ही मैं ब्राह्मण मानता हूँ। क्रोधरहित व्यक्ति क्रोध करने वाले से श्रेष्ठ है। तितिक्षु असहनशील से श्रेष्ठ है। अमनुष्य से मनुष्य विशिष्ट है। तथा ज्ञानरहित से ज्ञानवान श्रेष्ठ है। मैं शाप का उत्तर शाप में नहीं देता। मेरी दृष्टि में दम अमृत का द्वार है। मैं यह रहस्य ज्ञान तुम्हें बताता हूँ कि मनुष्य से श्रेष्ठ यहाँ कुछ नहीं है। यह मोक्षधर्म पर्व की स्वर्णाक्षरी उक्ति संस्कृत साहित्य में अनुपम हैः नाहं शप्तः प्रतिशपामि किञ्चित् दमं द्वारं ह्यमृतस्ये ह वेद्मि। सत्य स्वर्ग की सीढ़ी है, जैसे समुद्र पार जाने के लिए नौका होती है। अध्याय 289 में युधिष्ठिर ने प्रश्न किया कि सांख्य और योग में क्या भेद है? मोक्षधर्म पर्व में मुख्यतः पांच विषय हैं। एक तो वैदिक अध्यात्म विद्या जिसका ऊपर बार-बार वर्णन किया गया है, दूसरे सांख्य मत, तीसरे योग का विवेचन, चौथे शैव दर्शन जिसका दक्ष-यज्ञ विध्वंस के प्रकरण में उल्लेख हो चुका है और पांचवां वैष्णव पान्चरात्र मत जिसे नारायणीय धर्म भी कहते हैं। उसका विस्तृत विवेचन आगे नारायणीय पर्व में आवेगा। सांख्य मतानुयायी सांख्य की और योग मतानुयायी योग की प्रशंसा करते थे। योग मतानुयायी लोगों का कहना था कि ईश्वर के बिना कुछ कारणों को मान लेने से मोक्ष की प्राप्ति सम्भव नहीं है। सांख्यवादी शास्त्र पर बल देते हैं और योगवादी प्रत्यक्ष अनुभव पर बल देते हैं। योग मत में साधना के ऊपर बहुत गौरव है। बलहीन योगी को विषय खींच ले जाता है, किन्तु वही अपने तेज को दीप्त करके सिद्धि तक पहुँचता है। जैसे धनुर्धारी बाण से लक्ष्य को बेधता है, वैसे ही योगी योगबल से मोक्ष को प्राप्त करता है। ध्यान और धारणा के द्वारा योगी अवश्य सिद्धि प्राप्त कर सकता है। योग के जो गुण शास्त्रों में कहे गये हैं, वे उसके शरीर में प्रकट हो जाते हैं, जैसे-शरीर में हल्कापन, आरोग्य, अलोलुपता, रंग निखर जाना और कंठ में स्वर का उत्तम हो जाना। योग के वर्णन के बाद अध्याय 290 में सांख्य का विशद वर्णन किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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