भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
खण्ड : 3
शान्ति पर्व के राज धर्म पर्व और आपद् धर्म की सामग्री में छानबीन की अपेक्षा है। इसमें प्राचीन भारतीय राज शास्त्र का सूक्ष्म विवेचन है और उसके अर्थानुसंधान के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता है। विशेषतः चाणक्यकृत अर्थशास्त्र और मानव-धर्म शास्त्र इन दो ग्रन्थों की सामग्री को शान्ति पर्व के साथ मिलाकर देखना होगा। मोक्ष धर्म पर्व के लगभग डेढ़ सौ अध्याय भारतीय धार्मिक साहित्य में अपना अद्वितीय स्थान रखते हैं। प्राचीन धार्मिक मतों का जैस संग्रह यहाँ है वैसा उपनिषद् युग और बौद्ध साहित्य में लगभग ढाई सौ दिट्ठियों का उल्लेख आता है और मेरा अनुमान है कि उनसी सूक्ष्म सूची मोक्ष धर्म पर्व से प्राप्त की जा सकती है। मोक्ष प्राप्ति के जो उपाय हैं, उन्हें मोक्ष धर्म कहते थे। उस समय एक-एक आचार्य कई-कई धर्मों या मतों का प्रतिपादन करता था। किसने कहाँ से कितना लिया, इसका पूरा लेखा-जोखा कठिन कार्य है। इसके लिए बौद्ध साहित्य की गहरी छान-बीन आवश्यक है, क्योंकि बुद्ध ने भी अपने समसामयिक आचार्यों के मतों से कुछ कम सामग्री नहीं ली। वह स्वयं उस समय के गणी आचार्य और इस प्रकार की सामग्री लेने में अपने को स्वतंत्र मानते थे। कौन किस-किस मत का अनुयायी है, यह उसकी प्रज्ञा पर निर्भर था। श्वेताश्वतर उपनिषद् के आरम्भ में स्पष्ट लिखा है कि उस समय के जो मत थे उनमें से एक दो या अनेक के शब्दों का संयोग किया जाता था। वस्तुतः धर्म मोक्ष पर्व इसका प्रमाण है। हमारी इच्छा है कि कोई दार्शनिक विद्वान इस अध्ययन को वैज्ञानिक-धरातल पर प्रतिष्ठित करे। जयेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सं. 2023 जून 66 -वासुदेवशरण अग्रवाल
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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