विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
6. भीष्म पर्व
अध्याय : 23
पहला अध्याय- अर्जुन का विषाद
‘गीता’ महाभारत का सर्वोत्तम अंश है। इस बड़े ग्रन्थ में जिसे ‘शतसाहस्री संहिता’ कहते हैं और भी कितने ही तेजस्वी प्रकरण हैं, किन्तु गीता जैसी साभिप्राय और सुविरचित रचना दूसरी नहीं। गीता को महाभारतकार ने जिस संदर्भ में रखा है, इसका भी ग्रन्थ की अर्थवत्ता के लिए बहुत महत्त्व है। गीता कुरु-पाण्डवों के युद्ध से पूर्व उस व्यक्ति से कही गई, जो दोनों पक्षों के क्षात्र बल का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक है, युद्ध की दृष्टि से अर्जुन पाण्डव पक्ष का सर्वश्रेष्ठ पात्र है। पाण्डवों के पक्ष में धर्म का आग्रह था। युद्ध आरम्भ करने से पूर्व अर्जुन का मन बहुत बड़े तनाव की स्थिति में आ गया था। मनुष्य की सोचने की, कर्म करने की, और चाहने की जितनी शक्ति है, उसकी भरपूर मात्रा जिस काम में उड़ेल दी जाय, वह युद्ध का रूप है। बाह्य शस्त्रों का प्रयोग और संहार तो उसका गौण पक्ष है। हम शस्त्रों का प्रयोग न भी करें तो भी मन का वैर भाव विनाश करा डालता है। अपने ज्ञान, कर्म और हृदय की भावना से युक्त होकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के अनेक प्रसंग जीवन में आया ही करते हैं। जो व्यक्ति जितना महान है, उसके लिए ऐसे प्रसंग भी उतने ही गम्भीर हुआ करते हैं। इस बिन्दु पर पहुँचकर मानव अपने पूरे व्यक्तित्व को समेटकर कर्म की भट्टी में डाल देता है। पूर्व की घटनाओं ने अर्जुन को भी उसी मोड़ तक पहुँचा दिया था। उस बिन्दु से आगे उसके लिए दूसरा मार्ग न था, ‘कार्य वा साधयामि, शरीरं वा पातयामि’ यही एकमात्र अर्जुन के जीवन की संगति थी। इसे ही युद्ध कहते हैं। यह युद्ध भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का हो सकता है। दोनों में ही आत्माहुति वीर की एकमात्र गति होती है, वही उसके चलने का मार्ग अवशिष्ट रहता है, पलायन नहीं। ऐसे कठिन मोर्चे पर पहुँचकर अर्जुन का दृढ़ मन टुकड़े-टुकड़े हो गया। जिस धर्म के भाव ने उसे युद्ध के लिए आगे बढ़ाया था, उसी ने अर्जुन के मन को संदेह से भर दिया। उसे ऐसा लगा, मानो वह नीति-धर्म की हत्या के लिए बढ़ रहा हो। जिस राज्याधिकार के लिए युद्ध करना धर्म था, उस अधिकार की भावना को त्याग के भाव से क्षण भर में ही जीता जा सकता था और यों युद्ध का प्रपंच ही मिट जाता। कृष्ण ने अर्जुन की इस डांवाडोल स्थिति को क्लैब्य या नपुंसकता कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज