विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 157-177
सर्प ने उत्तर दिया, ‘‘यदि तुम मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दो, तो मैं तुम्हारे भाई को छोड़ दूँगा।’’ युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘इच्छानुसार प्रश्न करो। यदि मैं जानता होउंगा तो उत्तर दूँगा। इस लोक में ब्राह्मण को जो ज्ञात होना चाहिए, मालूम होता है तुम उसको जानते हो।’’ सर्प ने पूछा, ‘‘ब्राह्मण कौन है? जानने योग्य क्या है?’’ युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘सत्य, दान, क्षमा, शील, दया, दम और अहिंसा जिस व्यक्ति में हो, वही ब्राह्मण है। जिसमें सुख नहीं और दुःख भी नहीं, ऐसा परब्रह्म ही जानने योग्य है।’’ सर्प ने प्रश्न को और नुकीला बनाते हुए कहा, ‘‘लोक में तो चार वर्ण माने जाते हैं। तुमने जो सत्य, दान, क्षमा आदि ब्राह्मणों के लक्षण कहे, वे तो शूद्रों में भी होते हैं। तो फिर क्या शूद्र को भी ब्राह्मण कहोगे? और सुख-दुःख से परे जिसे तुमने ज्ञेय कहा है, ऐसी तो कोई वस्तु मेरी समझ में नहीं आती।’’ बुद्धि को झकझोर देने वाला यह महाप्रश्न भारतीय समाज व्यवस्था का शाश्वत प्रश्न रहा है। प्रश्नों के रंग-ढंग से ज्ञात होता है कि रूढ़िगत समाज व्यवस्था के प्रतिकूल भगवान बुद्ध ने और उनके सदृश उदारता से सोचने वाले अन्य बुद्धिवादी विचारकों ने जो तर्क रखे थे, उन्हीं का एक संदर्भ सर्प और धर्मराज की इस प्रश्नोत्तरी में सुरक्षित है। ब्राह्मण और शूद्र के विषय का प्रश्न जितना तीक्ष्ण था, युधिष्ठिर का उत्तर उसे कहीं अधिक साहसपूर्ण है। युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘शूद्र में यदि सत्य, दान, अक्रोध आदि आचार के लक्षण हों तो वह शूद्र नहीं रह जाता। ब्राह्मण में यदि ये लक्षण न हों तो वह ब्राह्मण नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज